मणिपुर में हुई हिंसा ने राज्य की युवा पीढ़ी को दिया जिंदगी भर का जख्म
राज्य में भड़की हिंसा में अबतक करीब 60 लोगों की मौत हुई है ..
गुवाहाटी: मणिपुर की आठ वर्षीय बार्बी बार-बार अपनी मां से सवाल करती है, ‘‘जब हम स्कूल जाएंगे तो क्या हम पर पथराव होगा ?’’ हालांकि, बार्बी दोबारा स्कूल जाने और पुराने मित्रों से मिलने को लेकर आशान्वित है और कुछ इसी तरह का विचार किंडरगार्टन में पढ़ने वाली चार साल की नैंसी का भी है। लेकिन अपने जीवन के दो दशक पार कर चुकी लारा अपने अनिश्चित भविष्य को जानती है और कुछ इसी तरह का हाल मणिपुर के उन युवाओं का भी है जो हिंसा से प्रभावित हुए हैं।
लारा की चिंता है कि क्या उसकी तरह मणिपुर हिंसा से प्रभावित अन्य छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो सकेंगे जिनपर उनका करियर और भविष्य निर्भर है। बार्बी, नैंसी और लारा (सुरक्षा के मद्देनजर पहचान छिपाने के लिए परिवर्तित नाम) उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद पलायन किया और इस समय राहत शिविरों में हैं।
नैंसी के घर पर उपद्रवियों ने आग लगा दी जिसके बाद उसका परिवार पलायन करने को मजबूर हुआ। बार्बी के घर पर उस समय पथराव किया गया जब वह परिवार के साथ अपने घर में ही मौजूद थी। लारा का घर बच गया है क्योंकि पड़ोसियों ने उपद्रवियों से उन्हें बचाया। उसने परिवार के साथ राहत शिविर में आश्रय लिया है।
लारा ने तीन मई की भयावह रात को याद करते हुए कहा, ‘‘मुझे अब नींद नहीं आती। वे खौफनाक घटनाएं याद आती हैं। हम सौभाग्यशाली थे कि हमारे पड़ोसी (दूसरे समुदाय के हैं) अच्छे थे। उन्होंने हिंसा की रात हमें आश्रय दिया और हमारे घर की रक्षा की।’’
गौरतलब है कि मणिपुर में तीन मई को उस समय हिंसा भड़क गई थी जब मेइती समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (ST) के दर्जे की मांग किए जाने के विरोध में राज्य के 10 जिलों में ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ निकाला गया।
लारा ने बताया, ‘‘हम अगली सुबह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कैंप सुरक्षित पहुंच गए, लेकिन एक दोस्त के परिवार के तीन सदस्य इतने भाग्यशाली नहीं थे। हमारे पीछे भीड़ ने उनका वाहन रोका और गाड़ी से उतार कर उन्हें पीटा।’’ लारा ने रोते हुए कहा, ‘‘मेरा दोस्त इस समय दिल्ली में है, उसकी मां और भाई की मौत हो गई है और उसकी भाभी अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ रही है।’’
बार्बी बाहर से सामान्य दिखाई देती है लेकिन जब इंफाल स्थित उसके घर की चर्चा होती है तो वह निराश हो जाती है। वह बार-बार अपनी मां से पूछती है, ‘‘ क्यों लोग हमारे घर पर पथराव कर रहे थे ? क्या जब हम स्कूल जाएंगे तब भी वे पथराव करेंगे? हमने क्या गलत किया था? ’’
वह अपने अभिभावकों से मेइती और कुकी का मतलब पूछती है क्योंकि वह इन दो शब्दों को पहली बार सुन रही है। गौरतलब है कि मणिपुर में संघर्ष मुख्य रूप से मेइती और कुकी जातियों के बीच होता है।
दो बेटियों के साथ इंफाल से पहुंची बार्बी की मां बताती है, ‘‘वह नहीं मानती कि उसके तथा दूसरे समुदाय के उसके दोस्तों के बीच कोई अंतर है।’’
नैंसी के पिता भी अपनी बेटी को मणिपुर की स्थिति को समझाने में मुश्किल का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वह किंडरगार्टन में पढ़ती थी और अपने स्कूल से प्यार करती है। वह लगातार अपनी मां और मुझसे पूछती है कि कब हम लौटेंगे। हमारे पास इंफाल में लौटने के लिए अब घर भी नहीं बचा है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि उससे क्या कहूं।’’
लारा दावा करती हैं कि मणिपुर में विभाजनकारी राजनीति हो रही है, शीर्ष नेता बिना नतीजों की परवाह किए बिना तीखे बयान दिए जा रहे हैं और दूसरे उनका अनुसरण कर रहे हैं।
सिविल सेवा में जाने की इच्छा रखने वाली लारा ने कहा, ‘‘ मोटे तौर पर मेइती या कुकी को जिम्मेदार नहीं ठहराया नहीं जा सकता। हमारे पड़ोसियों ने (जो दूसरे समुदाय के थे) हमारी जान और हमारा घर बचाया। मेरे दोस्तों ने अपने समुदाय की ओर से माफी मांगी।’’
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने आठ मई को बताया कि राज्य में भड़की हिंसा में अबतक करीब 60 लोगों की मौत हुई है और 231 लोग घायल हुए हैं। उन्होंने बताया कि कई धार्मिक स्थलों सहित 1700 मकानों को जला दिया गया है।