एक साथ चुनाव पर राष्ट्रीय सहमति न बने तो इसे लोगों पर थोपा नहीं जाना चाहिए: एस वाई कुरैशी
यह पुस्तक भारत में चुनावों के इतिहास, प्रक्रियाओं और राजनीति पर गहराई से प्रकाश डालती है।
New Delhi: एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा देश में एक साथ चुनाव कराने की संभावनाएं तलाशे जाने के बीच पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि अगर एक साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वसम्मति नहीं बनती है तो इसे ‘‘लोगों पर थोपा’’ नहीं जाना चाहिए। कुरैशी ने यह भी उम्मीद जताई कि वर्तमान चुनाव आयुक्त ‘‘दृढ़ रहेंगे’ और आगामी चुनाव में आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में कड़ाई के साथ तत्काल कार्रवाई करेंगे।
कुरैशी ने अपनी नई पुस्तक ‘इंडियाज एक्सपेरिमेंट विद डेमोक्रेसी: द लाइफ ऑफ ए नेशन थ्रू इट्स इलेक्शन्स’ पर ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि कोई पार्टियों द्वारा मुफ्त की सौगातों का वादा करने में कानूनी तौर पर खामी नहीं तलाश सकता। साथ ही उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय भी इस प्रथा को खत्म नहीं करा सका।
कुरैशी की किताब को प्रकाशित किया है हार्पर कॉलिन्स इंडिया ने और इसका विमोचन बुधवार को किया गया। यह पुस्तक भारत में चुनावों के इतिहास, प्रक्रियाओं और राजनीति पर गहराई से प्रकाश डालती है।
उन्होंने दलों को धन देने के लिए चुनावी बांड को माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किए जाने पर भी निशाना साधा और आरोप लगाया कि इसने धन देने की पूरी प्रक्रिया को ‘पूरी तरह गैर पारदर्शी’ बना दिया है।
कुरैशी ने कहा, ‘‘ 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री (अरुण जेटली) ने अपना पहला भाषण दिया था और उनका पहला वाक्य बहुत ही सुखद था जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक दलों को धन देने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी तब तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं हैं। हम भी ठीक यही बात कहते आ रहे हैं।’’
जुलाई 2010 से जून 2012 तक देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे कुरैशी ने कहा, ‘‘ उनका दूसरा वाक्य भी मधुर था( मेरे कानों के लिए) कि पिछले 70वर्षों में हम दलों को धन देने में पारदर्शिता नहीं ला पाए हैं। मैंने सोचा था कि उनका तीसरा वाक्य यह होगा कि हम पारदर्शिता लागू करने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने चुनावी बांड पेश किया और उसने जो भी थोड़ी बहुत पारदर्शिता थी, उसे भी खत्म कर दिया।’’