जलियांवाला बाग हत्याकांड की 104वीं बरसी, जाने आखिर क्या हुआ था उस दिन, इस काले दिन को याद कर आज भी सहम जाती है सांसे

Rozanaspokesman

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इस दौरान वहां पर 5000 लोग मौजूद थे।

104th anniversary of Jallianwala tiger massacre, know what happened on that day

Chandigarh :जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास में घटी एक घटना है जिसे केवल याद कर लेने भर से लोगों के दिल दहल जाते हैं। जलियांवाला बाघ की कहानी इतिहास के पन्नों में क्रांतिकारियों के खून से लिखी गई है।इस बाघ में कई बेकसूर मासूमों के खून के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानियों के भी खून बहे थ। जलियांवाला बाग की कहानी अंग्रेजों के अत्याचार और गुलामी की जंजीरों से आजाद होने का सपना देखने वाले भारतीयों की है।

13 अप्रैल यानि आज जलियांवाला बाग हत्याकांड की 104वीं बरसी है। आज हम आपको इस दर्दनाक इतिहास के बारे में बताने जा रहे है।

जलियांवाला बाग पंजाब के अमृतसर में हैं.ऐसी जगह पर 13 अप्रैल साल 1919 को अंग्रेजों ने एक साथ, कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थी। इस दौरान वहां पर बच्चे, महिला, बूढ़े सभी मौजूद थे।

बता दें कि 13 अप्रैल को रौलट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में भाग लेने के लिए हजारों की संख्या में लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे हुए थे, जिसने वास्तव में नागरिक अधिकारों पर अंकुश लगाया था, जिसमें उनकी आवाज को दबाने और पुलिस बल को अधिक शक्ति देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल थी।

रौलट एक्ट

बता दें कि रौलट एक्ट 1919 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा पारित एक दमनकारी कानून था, जिसने उन्हें बिना मुकदमे के राजद्रोह के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति को कैद करने की अनुमति दी थी। इस अधिनियम की वजह से पंजाब सहित पूरे भारत में विरोध शुरू हुआ।

आपको बता दें कि, उस दिन जलियांवाला बाग में ब्रिटिश के दमनकारी नीति रौलट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था। इस दौरान वहां पर 5000 लोग मौजूद थे। बता दें कि वहां पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे।

उस समय जनरल रेजिनल्ड डायर ने इस विरोध को अपने खिलाफ आंदोलन समझा और अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग में घुस गए।  बता दें उन्होंने वहां से निकलने वाले एक मात्र दरवाजे को भी बंद कर दिया और बिना किसी चेतावनी के डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियां चलनी शुरू कर दी।  बता दें कि  लगभग दस मिनट तक गोलीबारी जारी रही,  और इस गोलीबारी में 400 से 1,000 मासूम लोग मारे गए और 1,200 से अधिक घायल हुए। और यह दिन इतिहास में काली दिन बन गई। 

बताया जाता है कि इस घटना का असर शहीद भगत पर ऐसा हुआ कि वो अपने स्‍कूल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे। बता दें कि इस घटना के बाद पूरे भारत में आक्रोश फैल गया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। 

आपको बता दें कि इस नरसंहार की दुनियाभर में आलोचना हुई और 1920 में डायर को इस्‍तीफा देना पड़ा। साल 1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेम्रेज से मृत्यु हो गई।