दया याचिकाओं पर फैसले में देरी का फायदा उठा रहे हैं मौत की सजा का सामना कर रहे दोषी: न्यायालय

Rozanaspokesman

देश

दया याचिकाओं को राज्यपाल ने 2013 में और राष्ट्रपति ने 2014 में खारिज कर दिया।

Death row convicts taking advantage of delay in deciding mercy petitions: SC

New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मौत की सजा का सामना कर रहे दोषी अपनी दया याचिकाओं पर निर्णय में अत्यधिक देरी का फायदा उठा रहे हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों को ऐसी याचिकाओं पर जल्द फैसला करने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा अंतिम निष्कर्ष दिए जाने के बाद भी, दया याचिका पर फैसला करने में अत्यधिक देरी होने से मौत की सजा का उद्देश्य नाकाम हो जाएगा।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, राज्य सरकार और/या संबंधित अधिकारियों को सभी प्रयास करने चाहिए कि दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला किया जाए और उनका निपटारा किया जाए, ताकि आरोपी को भी अपने भविष्य का पता चल सके और पीड़िता को न्याय मिल सके।". पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर यह टिप्पणी की, जिसमें एक महिला और उसकी बहन को सुनाई गई मौत की सजा को कम कर दिया गया था।

उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को आजीवन कारावास में इस आधार पर बदल दिया कि दोषियों द्वारा दायर की गई दया याचिकाओं पर राज्य/राज्य के राज्यपाल की ओर से फैसला करने में असामान्य और अस्पष्ट देरी हुई थी और याचिका को करीब सात साल एवं दस महीने तक लंबित रखा गया था।

एक निचली अदालत ने 2001 में कोल्हापुर में 13 बच्चों के अपहरण और नौ बच्चों की हत्या के लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई थी और उच्च न्यायालय ने 2004 में उसकी पुष्टि की थी। शीर्ष अदालत ने 2006 में उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था। बाद में, उनकी दया याचिकाओं को राज्यपाल ने 2013 में और राष्ट्रपति ने 2014 में खारिज कर दिया।

उच्च न्यायालय के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के दौरान अपराध की गंभीरता पर विचार किया जा सकता है। हालांकि, दया याचिकाओं पर फैसले में अत्यधिक देरी को भी मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने के लिए संबंधित विचार कहा जा सकता है।

पीठ ने कहा, "इसके मद्देनजर, मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने के उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।’’

भारत सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दलील दी कि अभियुक्तों के अपराध की गंभीरता को देखते हुए, उच्च न्यायालय को मौत की सजा को बिना किसी छूट के जीवन भर के लिए आजीवन कारावास में बदलने का आदेश सुनाया था।  उसकी दलीलों पर गौर करते हुए न्यायालय ने सजा में संशोधन करते हुए निर्देश दिया कि दोषियों को बिना किसी छूट के ताउम्र आजीवन कारावास की सजा काटनी होगी।