Bombay High Court: शुक्राणु या अंडाणु दाता का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
महिला ने अपनी याचिका में कहा कि सरोगेसी से पैदा हुई उसकी बेटियां उसके पति और अंडाणु दानकर्ता छोटी बहन के साथ रह रही हैं।
Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि शुक्राणु या अंडाणु दाता का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वह बच्चे के जैविक माता-पिता होने का दावा नहीं कर सकता है।
अदालत ने 42 वर्षीय महिला को अपनी पांच वर्षीय जुड़वां बेटियों से मिलने की भी अनुमति दी। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि सरोगेसी से पैदा हुई उसकी बेटियां उसके पति और अंडाणु दानकर्ता छोटी बहन के साथ रह रही हैं।
याचिकाकर्ता के पति ने दावा किया कि चूंकि उसकी साली ने अंडे दान किए थे, इसलिए उसे जुड़वा बच्चों की जैविक मां कहलाने का वैध अधिकार है और उसकी पत्नी का उन पर कोई अधिकार नहीं है।
हालांकि, न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने पति की दलील को खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता की छोटी बहन अंडा दाता थी लेकिन उसे यह दावा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वह जुड़वा बच्चों की जैविक मां है।
याचिका के अनुसार, दंपति सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से गर्भधारण नहीं कर सके और याचिकाकर्ता की बहन स्वेच्छा से अपने अंडे दान करने के लिए आगे आई।
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