POCSO अपराधों के मामले में अनिवार्य रूप से सूचित करने के खिलाफ अर्जी पर HC नें केंद्र से जवाब मांगा

Rozanaspokesman

देश

अदालत ने केंद्र सरकार से छह सप्ताह के भीतर याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।.

HC seeks Centre's response on plea against mandatory reporting of POCSO offenses

New Delhi:  दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों की अनिवार्य सूचना पुलिस को देने से संबंधित पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ दायर एक अर्जी पर मंगलवार को केंद्र से जवाब मांगा।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने वकील हर्ष विभोर सिंघल की याचिका पर नोटिस जारी किया। सिंघल ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो अधिनियम) की धारा 19, 21 और 22 को ‘‘न्यायिक रूप से अमान्य’’ करने का अनुरोध किया है। अदालत ने केंद्र सरकार से छह सप्ताह के भीतर याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।.

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि धाराएं कानून के लिहाज से ठीक नहीं हैं क्योंकि वे नाबालिगों को ‘‘सूचित नहीं करने के लिए समझ बूझकर सहमति देने के अधिकार’’ से वंचित करती हैं और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने और स्वतंत्रता के साथ-साथ निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 19, 21 और 22 में 'किसी भी व्यक्ति' को 18 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों के बारे में संदेह या ज्ञान होने की अनिवार्य रूप से सूचना पुलिस को देने की आवश्यक है (धारा 21), ऐसा नहीं करने पर कारावास निर्धारित करती है (धारा 21) और झूठी सूचना या अच्छी नीयत से गलत सूचना देने पर सुरक्षा प्रदान करती है (धारा 22)।’’

याचिका में कहा गया है कि हजारों किशोर नाबालिगों के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने के लिए जेलों में बंद हैं, जो अनुमोदित चिकित्सा केंद्रों द्वारा सूचना दिये जाने के भय से झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाकर अपनी जान जोखिम में डालने के लिए मजबूर हैं।

याचिका में दलील दी गई है कि अनिवार्य सूचना की आवश्यकता वाली धाराएं मनमानी और असंवैधानिक हैं और रद्द करने योग्य है। इसमें कहा गया है, ‘‘पॉक्सो नाबालिगों को हिंसक यौन अपराधों और अपराधियों द्वारा यौन हिंसा से बचाने के लिए है और इसका उद्देश्य सहमति से बनाये गए यौन संबंध को आपराध की श्रेणी में लाना नहीं है।’’ मामले की अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी।