विवाहित महिला के साथ सहमति से संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट
विवाहित महिला लंबे समय तक सहमति से संबंध बनाए रखती है, तो इसे धोखाधड़ी का परिणाम नहीं माना जा सकता।
Punjab-Haryana High Court News: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि और 9 साल की सजा को रद्द कर दिया है। उस व्यक्ति को शादी का झांसा देकर संबंध बनाने के आरोप में दुष्कर्म का दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने कहा कि विवाहित महिला दो बच्चों की मां है और वह अपने निर्णयों के परिणामों को जानने में सक्षम है। ऐसे में अगर महिला की सहमति से संबंध बने हैं तो इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। (Consensual sex with a married woman is not rape: Punjab-Haryana High Court)
जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल की पीठ ने मामले की गहन सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि यदि कोई विवाहित महिला लंबे समय तक सहमति से यौन संबंध बनाए रखती है, तो इसे धोखाधड़ी का परिणाम नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि भले ही यह व्यभिचार, अनैतिकता और विवाह संस्था की अवमानना हो सकती है, लेकिन इसे झूठे वादे के तहत बनाए गए संबंध नहीं कहा जा सकता।
ऐसी स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 90 लागू नहीं की जा सकती और न ही आरोपित पर दुष्कर्म का अपराध सिद्ध किया जा सकता है। अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता पहले से विवाहित थी और दो बच्चों की मां थी। उसने यह स्वीकार भी किया कि वर्ष 2012-13 में उसने आरोपित के साथ 55-60 बार शारीरिक संबंध बनाए, वह भी अपने ससुराल में रहते हुए।
महिला ने दावा किया था कि उसका वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा था और तलाक की बातचीत हो रही थी, लेकिन कोर्ट ने इसे सतही और झूठा पाया। कोर्ट ने देखा कि महिला अपने ससुराल में ही रह रही थी और उसने कभी तलाक या पति के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि महिला आरोपित से 10 साल बड़ी थी।
जस्टिस नागपाल ने टिप्पणी की अभियोग लगाने वाली महिला न तो मासूम थी और न ही अनभिज्ञ युवती, बल्कि वह विवाहित होते हुए दो बच्चों की मां और समझदार महिला थी, जो अपने कृत्यों के परिणाम जानती थी। पीठ ने कहा कि लगभग दो वर्षों तक सहमति से बनाए गए संबंधों को अचानक दुष्कर्म कहना न्यायसंगत नहीं है।
हाईकोर्ट ने माना कि आरोपित ने महिला को विवाह के प्रलोभन में फंसा कर संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं किया था, बल्कि यह मामला प्रतिशोध की भावना से दर्ज कराई गई शिकायत का है। कोर्ट ने कहा कि यह सहमति से बने संबंध का मामला है जो बाद में बिगड़ गया। कोर्ट ने कहा कि इसे दुष्कर्म के अपराध के तहत नहीं माना जा सकता। भले ही आरोपी नैतिक रूप से निर्दोष न हो, लेकिन उसे दुष्कर्म के आरोप में दंडित करना न्यायसंगत नहीं होगा। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और आरोपित को सजा से बरी कर दिया।
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