टीपू सुल्तान की दुर्लभ बंदूक के निर्यात पर रोक
चौदह बोर की यह बंदूक 1793 से 1794 के बीच की है और इसे पक्षियों के शिकार के लिए बनाया गया था ।
लंदन: मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के लिए 18वीं शताब्दी में बनाई गई एक दुर्लभ नक्काशीदार बंदूक के निर्यात पर रोक लगा दी गई है । ब्रिटेन के एक संस्थान को इसे हासिल करने का समय देने के लिए यह कदम उठाया गया है। संस्थान भारत-ब्रिटेन के संबंधों की ‘तनावपूर्ण अवधि’ का अध्ययन कर रहा है। बंदूक का मूल्य 20 लाख पाउंड आंका गया है।
ब्रिटेन के कला एवं धरोहर मंत्री लॉर्ड स्टीफन पार्किंगसन ने ‘‘फ्लिंटलॉक स्पोर्टिंग गन’’ के निर्यात पर रोक लगाने संबंधी निर्णय पिछले सप्ताह लिया। इसका सुझाव उन्हें ‘एक्सपोर्ट ऑफ वर्क्स ऑफ आर्ट एंड ऑब्जेक्ट्स ऑफ कल्चरल इंटरेस्ट’ की समीक्षा समिति (आरसीईडब्ल्यूए) ने दिया था।
चौदह बोर की यह बंदूक 1793 से 1794 के बीच की है और इसे पक्षियों के शिकार के लिए बनाया गया था । असद खान मोहम्मद ने इसे बनाया था और इस पर उनके हस्ताक्षर हैं। ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की इस बंदूक के बारे में कहा जाता है कि इसे जनरल ‘अर्ल कार्नवालिस’ को भेंट किया गया था जिन्होंने 1790 से 1792 के बीच टीपू सुल्तान के साथ युद्ध लड़ा था।
लॉर्ड पार्किंगसन ने कहा, ‘‘ यह आग्नेयास्त्र अपने आप में अनोखा है और ब्रिटेन तथा भारत के बीच के अहम इतिहास का उदाहरण भी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे उम्मीद है कि इसे जनता के साथ व्यापक तौर पर साझा किया जा सकता है और उस तनावपूर्ण काल के बारे में हमारी समझ को गहरा करने में यह मददगार हो सकता है ,जिनसे हमारे देशों को आकार दिया है।
मैसूर के शेर नाम से प्रसिद्ध टीपू सुल्तान एंग्लो-मैसूर युद्धों में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और उसके सहयोगियों के धुर विरोधी थे। टीपू सुल्तान श्रीरंगपटनम के अपने गढ़ की रक्षा करते हुए चार मई 1799 को मारे गए थे। उनकी मौत के बाद उनके उत्कृष्ट निजी हथियार महल से निकाल कर उस वक्त के ब्रिटिश सेना के आला अधिकारियों को सौंप दिए गए थे। समिति के सदस्य क्रिस्टोफर रॉवेल ने कहा कि यह बेहद सुंदर है, साथ ही तकनीकि रूप से भी काफी उन्नत है। बंदूक के लिए निर्यात लाइसेंस आवेदन पर निर्णय 25 सितंबर तक टाल दिया गया है।