Paris Paralympics 2024: नवदीप सिंह ने भाला फेंक के F41 वर्ग में स्वर्ण पदक जीता

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नवदीप का जन्म साल 2000 में हुआ था। जब वह दो साल के हुए तो उनके माता-पिता को एहसास हुआ कि उनका बच्चा बौनेपन से पीड़ित है।

Navdeep Singh won gold medal in F41 category of javelin throw news in hindi

Paris Paralympics 2024 News In Hindi: हरियाणा के नवदीप सिंह ने पेरिस पैरालिंपिक में भाला फेंक के F41 वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है। इस वर्ग में छोटे कद के खिलाड़ी भाग लेते हैं। 4 फीट 4 इंच लंबे कद वाले नवदीप को बचपन से ही अपने छोटे कद को लेकर ताने सुनने पड़े। बाद में वह नीरज चोपड़ा से प्रेरित हुए और अब पेरिस में इतिहास रच दिया है।

पेरिस पैरालिंपिक में भारत के लिए मेडल जीतने का सिलसिला जारी है। खेलों का यह महाकुंभ आज 8 सितंबर को खत्म हो जाएगा लेकिन उससे एक दिन पहले शनिवार 7 सितंबर को भारत की झोली में 1 और गोल्ड मेडल आ गया। इसके साथ ही भारत के पास अब 7 गोल्ड हो गए हैं। नवदीप सिंह ने पुरुषों की जेवलिन थ्रो F41 कैटेगरी में यह उपलब्धि हासिल की। वह इस वर्ग में पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी हैं। इस वर्ग में छोटे कद के एथलीट भाग लेते हैं। नीरज चोपड़ा पेरिस में स्वर्ण पदक नहीं जीत सके, लेकिन उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले नवदीप ने समाज के तानों के बीच यह स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया है। हरियाणा के 4 फीट 4 इंच के खिलाड़ी को सफलता के इस मुकाम तक पहुंचने के लिए एक कठिन सफर करना पड़ा है।

24 साल के नवदीप ने तीसरे प्रयास में 47.32 मीटर थ्रो किया था लेकिन ईरान के एथलीट सादेघ बेत सयाह ने 47.64 मीटर थ्रो करके गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। हालाँकि, इवेंट के बाद, उन्हें पैरालंपिक नियमों का उल्लंघन करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया और नवदीप के रजत को स्वर्ण में अपग्रेड कर दिया गया। इससे नवदीप की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यह सफलता उनके जुनून का ही नतीजा है क्योंकि हरियाणा के गांव बुआना लाखू में पले-बढ़े नवदीप बचपन से ही बौनेपन से पीड़ित थे। आस-पड़ोस के बच्चे उसे "बौना" कहकर ताना मारते थे। इसके चलते उनका घर से निकलना मुश्किल हो गया।

जब नवदीप ने यह उपलब्धि हासिल की तो उनके भाई मंदीप श्योराण और मां मुकेश रानी उनका हौसला बढ़ा रहे थे। मैच के बाद उन्होंने एक इंटरव्यू में खुलासा किया कि पड़ोस के सभी बच्चे उनकी हाइट को लेकर चिढ़ाते थे। इससे नवदीप ने परेशान होकर खुद को कमरे में बंद कर लिया। वह कई दिनों तक घर से बाहर भी नहीं निकलते थे लेकिन 2012 से यह तस्वीर धीरे-धीरे बदलने लगी। दरअसल, 2012 में नवदीप को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा।

नवदीप का जन्म साल 2000 में हुआ था। जब वह दो साल के हुए तो उनके माता-पिता को एहसास हुआ कि उनका बच्चा बौनेपन से पीड़ित है। दोनों ने इलाज कराने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो गाँव के बच्चे उसे चिढ़ाने लगे। इसके बाद उनके पिता ने उन्हें प्रमोट करना शुरू कर दिया। नवदीप के पिता पहलवान होने के साथ-साथ ग्राम सचिव भी थे। उन्होंने नवदीप को एथलेटिक्स में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इससे उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आने लगे। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की स्कूल प्रतियोगिता जीती और 2012 में उन्हें राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

पुरस्कार प्राप्त करने के चार साल बाद, नवदीप प्रशिक्षण के लिए दिल्ली चले गए, जहाँ उनके कोच नवल सिंह ने प्रशिक्षण शुरू किया। नवदीप गांव में कुश्ती की ट्रेनिंग लेते थे लेकिन उन्होंने नीरज चोपड़ा को अंडर-20 में विश्व रिकॉर्ड बनाते देखा। इससे उन्हें बहुत प्रेरणा मिली और उन्होंने कुश्ती छोड़कर भाला फेंकना शुरू कर दिया। उनके भाई मंदीप ने बताया कि उन्हें मेरठ या विदेश से भाला मंगवाना पड़ा। इसके लिए उनके पिता को कर्ज भी लेना पड़ा था।

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