जातीय जनगणना पर रोक दुर्भाग्यपूर्ण, नीतीश सरकार की लापरवाही से लगी रोकः उपेंद्र कुशवाहा
कुशवाहा ने इसके लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि यह फैसला उनकी लापरवाही का नतीजा है.
पटना: राष्ट्रीय लोक जनता दल ने पटना हाई कोर्ट के जातीय जनगणना पर रोक लगाने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि अदालत के फैसले पर हम कोई टिप्पणी नहीं करते लेकिन इस फैसले से समाज के पिछड़े, वंचित और शोषित तबके को मायूसी हुई है.
कुशवाहा ने कहा कि बिहार की नीतीश सरकार की कमजोरी की वजह से पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर रोक लगाने का फैसला दिया है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक ने यहां बयान जारी कर कहा कि रालोजद और उपेंद्र कुशवाहा का मानना है कि बिहार की सरकार और मुख्यमंत्री इस मुगालते में थे कि हाई कोर्ट से फैसला उनके पक्ष में आएगा और इसलिए जितनी तत्परता राज्य सरकार को इस संवेदनशील मामले में दिखानी चाहिए थी, राज्य सरकार ने नहीं दिखाई.
कुशवाहा ने इसके लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि यह फैसला उनकी लापरवाही का नतीजा है. राज्य सरकार ने बिना किसी तैयारी के मुकदमा लड़ा और उसकी वजह से ऐसा फैसला आया है. कुशवाहा ने कहा कि अदालत में ऐसे मौक़े पहले भी आएं हैं, जब राज्य सरकार के सुस्त रवैए के कारण नरसंहारों के मुजरिम भी बरी होते रहें हैं. उन्होंने कहा कि समता वादी विकास की धारा को आगे बढ़ाने में नीतीश जी की विफलता अब सार्वजानिक हो गई है, विरासत को आगे बढ़ाना इनके बूते संभव नहीं है. कुशवाहा ने कहा कि कभी वे मजबूत मुख्यमंत्री थे लेकिन अब वे मजबूर मुख्यमंत्री बन कर रह गए हैं.
कुशवाहा ने कहा कि जातीय गिनती जल्दी से जल्दी हो इसकी जरूरत पहले से महसूस की जा रही है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट सहित कई राज्यों की अदालतों ने पहले भी अलग-अलग समय पर संबंधित सरकारों से कहा है कि आपके पास जातियों का आंकड़ा नहीं है, आप आंकड़ा दें तभी हम इस तरह के विषय पर अपनी राय दे सकते हैं. सरकारों के पास जातियों का आंकड़ा नहीं है यह सबको मालूम है. 1931 में जातीय जनगणना हुई थी उसके बाद हुई ही नहीं. उन्होंने कहा कि आंकड़ा नहीं होने से परेशानी होती है. सरकारी योजनाओं का लाभ पिछड़े और वंचितों को नहीं पहुंच पाता है.
कुशवाहा ने कहा कि जातीय जनगणना बेहद जरूरी है और मुझे लगता है कि बिहार की नीतीश सरकार को पूरी तैयारी के साथ अदालत में अपना पक्ष रखना चाहिए था लेकिन सराकर की कोताही की वजह से अदालत ने जातीय जनगणना पर रोक लगा दी. इस फैसले से बिहार के वंचित, पिछड़ा और शोषित तबका सकते में है. राज्य सरकार की लापरवाही का खमियाजा अब उन्हें भुगतना पड़ेगा|