गरीबों के बच्चों की कमर तोड़ देगा केंद्र का हॉस्टल/पीजी के किराए पर 12% टैक्स लगाने का फैसला: राजीव रंजन

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, बिहार

उन्होंने कहा कि बिहार के बच्चे केंद्र सरकार के इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले हैं.

photo

पटना: केंद्र सरकार को गरीब तथा छात्र विरोधी बताते हुए जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता राजीव रंजन ने आज कहा है कि आम जनता को मंहगाई तले दबाने के बाद अब केंद्र सरकार गरीब छात्रों का जीवन रौंदने पर आमदा है. युवाओं को 2 करोड़ सालाना रोजगार देने के अपने जुमले से ठगने के बाद केंद्र सरकार अब उनकी जेब और पेट दोनों काटने पर आमदा है. यह लोग किस तरह गरीब बच्चों का भविष्य कुचलने पर आमदा है यह हॉस्टल/पीजी के किराए पर 12% जीएसटी लगाने के इनके फैसले से पता चलता है. इस नादिरशाही फैसले से पिछड़े-अतिपिछड़े, दलित व सभी जातियों के कमज़ोर तबके के लोग प्रभावित होने वाले हैं.

उन्होंने कहा कि सत्ता के घमंड में भाजपा इस कदर अंधी हो चुकी है कि उन्हें यह तक ध्यान नहीं है कि हॉस्टल/पीजी में वैसे ही परिवारों के बच्चे पढ़ते है जिनकी जेब फ्लैट या किराए के मकानों के खर्च का भार सहन नहीं कर सकते. गरीब माँ-बाप अपना पेट काट-काट कर अपने बच्चों को इस उम्मीद में भेजते हैं कि एक दिन पढ़-लिख कर वह अपना भविष्य संवार सके. बाहर रहने वाले उनके बच्चे पहले ही बढ़ी मंहगाई को लेकर खाने-पीने में तंगी झेल रहे थे और अब सरकार का इस फैसले से उनपर दोहरी मार पड़ने वाली है. 

राष्ट्रीय महासचिव ने कहा कि दिल्ली-कोटा में रहने वाले बच्चों का कई मकान मालिकों द्वारा आर्थिक दोहन किए जाने की शिकायतें लगातार आती रहती हैं. अब इस फैसले से सरकार ने आम गरीबों के बच्चों के शोषण का एक और रास्ता खोल दिया है. जो मकान मालिक गरीब बच्चों की मजबूरी का फायदा उठाने के आदि हैं वह इस निर्णय की आड़ में निश्चय ही किराये में मनमानी वृद्धि करेंगे, जिसके कारण कई छात्रों का भविष्य अधर में लटक जाएगा.   

उन्होंने कहा कि बिहार के बच्चे केंद्र सरकार के इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले हैं. हर कोई जानते हैं कि बड़े शहरों में रहकर सिविल सर्विसेज, इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य  प्रतियोगी परीक्षाओं करने वाले विद्यार्थियों में बिहार के छात्र-छात्राओं की संख्या सर्वाधिक रहती है. केंद्र सरकार इस फैसले से उन पर कहर टूट पड़ेगा. 

जदयू नेता ने कहा कि सरकार को सोचना चाहिए कि कोरोना काल के असर से देश अभी भी नहीं उबर पाया है. लोगों की आमदनी घटी है वहीं बेरोजगारी में भी वृद्धि हुई है. हालिया आये पीडब्ल्यूसी ग्लोबल कंज्यूमर इनसाइट्स पल्स सर्वे के मुताबिक आज तकरीबन 74% भारतीय अपनी व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति को लेकर चिंतित हैं. इनमें से 63% लोगों ने तो गैर-जरूरी खर्च में कटौती करना भी प्रांरभ कर दिया है. वहीं 50% लोगों का कहना है कि दुकान में खरीदारी करते समय उन्हें बढ़ती कीमतों का अनुभव होता है. यह दिखाता है कि शहरों से लेकर गांवों तक लोग मंहगाई से किस प्रकार त्रस्त हैं. ऐसे में इस तरह का निर्णय लोगों की हिम्मत को और तोड़ देगा. भाजपा यह जान ले कि युवाओं के हितों से खिलवाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जा सकती. इसीलिए अविलंब इस निर्णय को वापस ले.