Bihar News: ₹1,100 पेंशन ने बदली जीवन रेखाएं: वृद्धों और विधवाओं की सख्त ज़रूरतों पर क्या असर पड़ा?

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राष्ट्रीय, बिहार

1.9 करोड़ से अधिक लोगों को मिलेगा फायदा, ग्रामीण और महिलाओं में नीतीश सरकार की लोकप्रियता बढ़ी

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Bihar News: बिहार सरकार की सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में हाल ही में बड़ा बदलाव किया गया है। अब वृद्ध, विधवा और दिव्यांग लाभार्थियों को पहले की तुलना यानि ₹400 पेंशन से बढ़ाकर ₹1,100 पेंशन प्रतिमाह मिल रही है। यह बदलाव वंचित व कमजोर वर्गों के लिए जीवन की कई बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में सहारा बन रहा है।

पेंशन की राशि सीधे डीबीटी के जरिए लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंच रही है। इससे बिचौलियों की भूमिका लगभग खत्म हो गई है और लाभार्थी सीधे तौर पर राहत महसूस कर रहे हैं। सरकार के इस फैसले से 1.9 करोड़, 69 हजार, 255 लाभार्थियों को लाभ मिलने वाला है।विशेषज्ञों का मानना है कि पेंशन बढ़ोतरी का सीधा असर ग्रामीण इलाकों के वोट बैंक पर पड़ सकता है। खासकर महिलाओं और बुजुर्गों के बीच सरकार की छवि मजबूत हुई है। वहीं विधवाओं को भी सीधा लाभ मिलने से महिला मतदाताओं का समर्थन और पक्का होगा। पहले से ही साइकिल योजना, जीविका समूह और 50 प्रतिशत पंचायत आरक्षण से महिलाओं में नीतीश की छवि मजबूत है। पेंशन बढ़ोतरी ने इसे और धार दी है।

वृद्धजनों को प्रति माह दी जा रही पेंशन राशि में बढ़ोतरी पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि वृद्धजन समाज का अनमोल हिस्सा हैं। उनका सम्मानजनक जीवन यापन सुनिश्चित करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। राज्य सरकार इस दिशा में निरंतर प्रयत्नशील रहेगी।
विपक्ष को कितना नुकसान

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस योजना से विपक्ष को सीधा नुकसान होगा। सामाजिक सुरक्षा पेंशन का दायरा इतना व्यापक है कि लगभग हर पंचायत में इसका असर दिखेगा। साथ ही नीतीश सरकार ने पेंशन योजना की राशि में बढ़ोतरी कर विपक्ष से पेंशन योजना में बढ़ोतरी का मुद्दा भी छीन लिया। जिसकी चर्चा तेजस्वी यादव नें अपने मंच से कई बार की है। बड़ी बात यह है कि लालू राज में उपेक्षित रहे गरीब, बुजुर्ग और विधवा वर्ग को अब नीतीश सरकार राहत दे रही है। यही वजह है कि यह तबका चुनावी तौर पर निर्णायक हो सकता है और विपक्ष को अपने पुराने वोट बैंक में टूट का सामना करना पड़ सकता है।

कुल मिलाकर, ₹1,100 की पेंशन केवल आर्थिक मदद नहीं बल्कि गरीब और असहाय वर्ग की जीवन रेखा बन चुकी है। साथ ही यह “लालू राज बनाम नीतीश राज” की तस्वीर को और स्पष्ट करती है—जहां पहले योजनाएँ सिर्फ कागज़ों पर रहती थीं, वहीं अब उनके असर सीधे लोगों की ज़िंदगी में देखा जा सकता है।

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