Patna News: बिहार के मठ–मंदिरों को नई सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका देने की बड़ी पहल

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राष्ट्रीय, बिहार

यह  बातें बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद के अध्यक्ष प्रो. रणबीर नंदन पत्रकारों से वार्तालाप करते हुए कही।

new social and cultural role to the monasteries and temples of Bihar news in hindi

Patna News In Hindi: पटना, बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद 18 सितंबर को पटना के बापू सभागार में राज्यस्तरीय धार्मिक न्यास समागम का आयोजन करने जा रहा है। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने माता सीता के धाम की परिकल्पना को साकार किया, उसी प्रेरणा से धार्मिक न्यास पर्षद अपने संसाधनों का सार्थक उपयोग करते हुए सामाजिक चेतना के एक नए अध्याय की ओर बढ़ रहा है। हमारी कामना है कि दोनों नेता जिस समर्पण और आस्था के साथ सनातन परंपरा को बल दे रहे हैं, वह सतत बनी रहे और समाज को नई दिशा देता रहे।

यह  बातें बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद के अध्यक्ष प्रो. रणबीर नंदन पत्रकारों से वार्तालाप करते हुए कही।

प्रो. नंदन ने कहा कि यह सम्मेलन सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों की समीक्षा भर नहीं होगा, बल्कि आने वाले समय में मठ और मंदिरों की भूमिका को व्यापक और प्रभावी बनाने का खाका भी पेश करेगा। पंजीकृत मठ-मंदिरों के प्रबंधक, संत-महात्मा और राज्य सरकार के शीर्ष प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। इस सम्मेलन में बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद से पंजीकृत 4000 से अधिक मठ-मंदिरों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। सम्मेलन की तैयारी बापू सभागार में जोर शोर से चल रही है।

पर्षद के अध्यक्ष प्रो. रणबीर नंदन का कहना है कि मठ और मंदिर अब केवल आस्था और पूजा के केंद्र नहीं रहेंगे। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और समाज सुधार के सक्रिय मंच के रूप में विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जब धार्मिक स्थल जनता के दैनिक जीवन से गहराई से जुड़ेंगे, तो समाज को नई ऊर्जा और संतुलन मिलेगा। पर्षद ने योजना बनाई है कि हर मठ और मंदिर में स्वाध्याय केंद्र, पुस्तकालय और नि:शुल्क कोचिंग संस्थान शुरू किए जाएं। संस्कृत पाठशालाएं और वेदपाठ की नियमित व्यवस्था होगी ताकि प्राचीन ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके। सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोककला और संगीत के आयोजन भी होंगे, जिससे स्थानीय परंपराएं और भाषाएं मजबूत होंगी।

स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर मठ-मंदिर परिसरों में नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर, योग और आयुर्वेद केंद्र स्थापित किए जाएंगे। महिलाओं और युवाओं के लिए सिलाई-कढ़ाई, कंप्यूटर शिक्षा और अन्य कौशल विकास कार्यक्रम चलेंगे। पर्षद का मानना है कि मंदिरों की आर्थिक संपन्नता को समाज के उपयोग में लाने से गांव और कस्बों में रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे। दहेज रहित विवाह को प्रोत्साहन, गरीब कन्याओं की शादी में सहयोग, शराबबंदी और नशा मुक्ति पर जनजागरूकता अभियान इस पहल का महत्वपूर्ण हिस्सा होंगे। पूर्णिमा और अमावस्या पर कथा-पाठ और सामूहिक अनुष्ठान आयोजित कर सामाजिक एकता को मजबूत किया जाएगा। युवाओं के लिए व्यायामशालाएं और अखाड़े खोले जाएंगे, जहां 18 से 25 वर्ष के युवक नियमित शारीरिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें।

धार्मिक स्थलों के पांच किलोमीटर के दायरे में सफाई और प्लास्टिक मुक्त वातावरण सुनिश्चित किया जाएगा। मंदिर परिसरों के आसपास औषधीय और फलदार पौधों की नर्सरी बनाई जाएगी। सस्ती दवाओं की दुकानें, गौशालाओं का निर्माण और धर्मशालाएं भी योजनाओं का हिस्सा हैं। पर्षद का कहना है कि मंदिरों में आने वाले करोड़ों रुपये के चढ़ावे को सिर्फ शिखर पर सोना चढ़ाने या बैंक में जमा करने के बजाय समाज के सर्वांगीण विकास में लगाया जाएगा। पर्षद भविष्य में धार्मिक धरोहर को सांस्कृतिक पर्यटन से जोड़ने पर भी काम कर रहा है। इससे राज्य में रोजगार और आय के नए अवसर खुलेंगे और बिहार की समृद्ध परंपरा देश-दुनिया में और अधिक पहचान पाएगी।

 

प्रो. नंदन ने कहा कि राज्यभर के मठ और मंदिरों की मौजूदा स्थिति में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। यह धार्मिक न्यास की नई पहल है जिसका मुख्य उद्देश्य बिहार की सनातन परंपरा को मजबूत करना और समाज को संगठित करना है। बिहार में धार्मिक संस्थाओं के पास पर्याप्त स्थान और संसाधन उपलब्ध हैं, जिन्हें सही तरीके से उपयोग कर मठों को आपस में जोड़ा जाएगा। पर्षद की योजना है कि चारों धाम में विशेष केंद्र स्थापित किए जाएं और सभी बड़े तीर्थ स्थलों पर भी ऐसे केंद्र बनाए जाएं। इससे बिहार से लाखों श्रद्धालु जब देशभर के तीर्थों की यात्रा पर जाएं, तो उन्हें रहने, भोजन और अन्य सुविधाओं में राहत मिल सके। यह पहल बिहार में एक नई सामाजिक चेतना और व्यापक जनसंपर्क का आधार बनेगी। मठ और मंदिर शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में गहरी भागीदारी निभाकर गांव-गांव तक असर डालेंगे।

प्रो. नंदन का कहना है कि इन योजनाओं के लागू होने से बिहार के मठ और मंदिर केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि समाज को संगठित करने और उसे नई दिशा देने वाले केंद्र बनेंगे। यह कदम आने वाले वर्षों में राज्य की सामाजिक संरचना को मजबूती देगा और लोगों के जीवन में ठोस बदलाव लाएगा।

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