शाह से मुलाकात के एक दिन बाद कुशवाहा ने कहा : 2024 में मोदी को कोई चुनौती नहीं

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, बिहार

कुछ माह पहले जद(यू) से नाता तोड़ने के बाद कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक जनता दल की स्थापना की थी।

A day after meeting Shah, Kushwaha said: Modi has no challenge in 2024

पटना: जनता दल (यू) के संसदीय बोर्ड के पूर्व प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के एक दिन बाद शुक्रवार को कहा कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई चुनौती नहीं देख रहे हैं।. दिल्ली से लौटने के बाद यहां हवाई अड्डे पर संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कुशवाहा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘‘विपक्षी एकता’’ को लेकर किए जा रहे प्रयासों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जद(यू) के साथ मात्र वही दल हैं जिनके साथ राज्य में उनका गठबंधन है।

यह पूछे जाने पर कि बृहस्पतिवार शाम को शाह के साथ हुई उनकी बैठक में क्या चर्चा हुई, कुशवाहा ने कहा, ‘‘आप लोग अटकलें लगाने को स्वतंत्र हैं। मैं जितना उचित समझूंगा उतना ही खुलासा करूंगा।’’ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में उनके शामिल होने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर कुशवाहा ने कहा, ‘‘मैं अभी इस स्थिति में नहीं हूं कि कई ब्यौरों का खुलासा कर सकूं। जब समय आयेगा मैं अधिक बोलूंगा।’’

कुछ माह पहले जद(यू) से नाता तोड़ने के बाद कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक जनता दल की स्थापना की थी।

गौरतलब है कि कुशवाहा पहले राजग के सहयोगी थे और उस समय वह राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की अगुवाई कर रहे थे और उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री पद मिला हुआ था। उन्होंने 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा नीत गठबंधन से अलग होते हुए महागठबंधन से नाता जोड़ लिया था। उस समय महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और कुछ अन्य छोटे दल शामिल थे।

यद्यपि एक वर्ष बाद हुए बिहार विधानसभा चुनाव तक कुशवाहा का महागठबंधन से मोहभंग हो गया। उन्होंने मायावती की बहुजन समाजपार्टी एवं असदुदीन औवेसी की एआईएमआईएम के साथ गठजोड़ कर विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कुशवाहा की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पायी थी। इसके कुछ ही माह बाद कुशवाहा की जद(यू) में वापसी हुई और उन्होंने अपनी आरएलएसपी का नीतीश की पार्टी में विलय कर दिया।

कुशवाहा को यद्यपि पार्टी में एक बड़ा पद और विधान परिषद की सदस्यता दी गयी किंतु उनका मोहभंग उस समय हो गया जब नीतीश कुमार ने राजद के तेजस्वी यादव के साथ उन्हें उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया।

कोइरी समुदाय से आने वाले कुशवाहा का राज्य में यादवों के बाद सबसे अधिक आबादी वाला समूह है। कुशवाहा ने जद (यू) का फिर साथ छोड़ते हुए आरोप लगाया था कि नीतीश ने राजद के साथ एक समझौता कर लिया जिसके तहत तेजस्वी को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाएगी और जद (यू) प्रमुख दिल्ली जाएंगे एवं राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान देंगे।

अगले लोकसभा चुनाव के बारे में पूछे जाने पर कुशवाहा ने कहा, ‘‘मैं कहना चाहूंगा कि अभी तक नरेंद्र मोदी के लिए कोई चुनौती नहीं है। (जहां तक) नीतीश कुमार के प्रयासों की बात है तो मुझे आश्चर्य होता है कि लोग इसके क्या क्या मतलब निकाल रहे हैं। जब वह दिल्ली जाते हैं, केवल कांग्रेस एवं राजद जैसी पार्टियां ही उनके आगे पीछे रहती हैं। यह पार्टियां पहले से ही बिहार में सहयोगी हैं। इसमें ध्यान देने जैसी कोई बात नहीं है।’’ इस बीच राजद ने लालू-राबड़ी के शासनकाल में जंगल राज के कुशवाहा के आरोपों पर पलटवार किया।

राजद प्रवक्ता मृत्युजंय तिवारी ने कहा, ‘‘हम तो पहले ही कहते रहे हैं कि कुशवाहा का भाजपा से संबंध है। शाह के साथ इस बैठक के बाद उन्हें यह खुलासा करना चाहिए कि क्या सौदा हुआ। वह हम पर नीतीश कुमार के साथ सौदा करने का आरोप लगाते थे।’’

गौरतलब है कि कुशवाहा से मुलाकात से करीब एक सप्ताह पहले केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम माझी से भेंट की थी। कुशवाहा के विपरीत माझी अभी तक गठबंधन में बने हुए हैं और उनके पुत्र संतोष कुमार राज्य मंत्रिमंडल के सदस्य हैं।

बहरहाल, इन घटनाक्रमों को राजनीति में रुचि रखने वाले लोग बहुत ध्यान से देख रहे हैं क्योंकि बिहार में भाजपा को सहयोगियों की तलाश है और राज्य में उसके बहुत कम सहयोगी बचे हैं।

इसके साथ ही नीतीश कुमार सरकार द्वारा राज्य में करायी जा रही जातिगत जनगणना, राहुल गांधी द्वारा जातिगत जनगणना और 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को तोड़े जाने की मांग का समर्थन करने से महागठबंधन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में आबादी के हिसाब से ताकतवर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को अपने पक्ष में लाने की जुगत में लगा हुआ है। भाजपा की उम्मीदें कट्टर हिंदुत्व के साथ साथ गैर यादव ओबीसी एवं दलित वोट के हिस्से पर टिकी हुई हैं।

राजग ने 2019 में बिहार की 40 में से 39 लोकसभा सीटें जीती थीं। इनमें से 22 जद (यू) के खाते में गयी थीं। लोकजन शक्ति पार्टी ने छह सीटें जीती थीं। लोजपा अब दो खेमों में बंट गयी है जिनका नेतृत्व क्रमश: दिवंगत नेता रामविलास पासवान के भाई एवं केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस एवं पुत्र चिराग पासवान कर रहे हैं।