What Is SIR? News: क्या है एसआईआर मतदाता सूची और क्यों इसको लेकर बिहार में हो रहा घमासान,जाने सबकुछ
राज्य की चुनावी प्रक्रिया बड़े अभियान के केंद्र में है जिसे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के नाम से जाना जाता है।
What Is SIR? Why It Is Important In Bihar Election 2025 News In Hindi: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले, राज्य की चुनावी प्रक्रिया एक बड़े अभियान के केंद्र में है जिसे "विशेष गहन पुनरीक्षण" (Special Intensive Revision - SIR) के नाम से जाना जाता है। यह अभियान भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा शुरू किया गया है और इसका सीधा संबंध बिहार की मतदाता सूची के शुद्धिकरण से है। हालांकि, यह सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया से कहीं अधिक बढ़कर एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिस पर राजनीतिक और सामाजिक दलों में तीखी बहस छिड़ी हुई है।
एसआईआर (SIR) क्या है?
सभी लोगों को अभी तक यही बात समझ नहीं आ रही है कि आखिर कार एसआईआर (SIR) क्या है, इसको लेकर क्या हो रहा है, वहीं इसके क्या फायदे है और इसके जरिए बिहार में हो क्या रहा है, इन सभी बातों के लिए लेख पढ़े।
बता दें कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) एक राष्ट्रव्यापी कवायद है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अद्यतन, सटीक और त्रुटिहीन बनाना है। इस प्रक्रिया के तहत कई पहलुओं पर कार्य किया जाता है। जैसे...
- पात्र मतदाताओं का समावेशन: 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी पात्र भारतीय नागरिकों के नाम मतदाता सूची में जोड़े जाते हैं।
- अपात्र मतदाताओं का विलोपन: मृत, स्थायी रूप से स्थानांतरित, या डुप्लिकेट नामों को सूची से हटाया जाता है।
- विवरणों का सुधार: नाम, पता या अन्य व्यक्तिगत जानकारी में किसी भी गलती को ठीक किया जाता है।
बिहार में यह अभियान जुलाई 2025 में शुरू हुआ है, जिसमें बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन कर रहे हैं।
विवाद और विरोध का मूल कारण
एसआईआर अभियान के विरोध का मूल कारण निर्वाचन आयोग द्वारा जारी कुछ आँकड़े और उनके संभावित निहितार्थ हैं। विशेष रूप से, निर्वाचन आयोग ने खुलासा किया है कि सत्यापन के दौरान लगभग 52 लाख मतदाता "अपने पते पर नहीं पाए गए"। इन 52 लाख में से, 18.66 लाख मृत मतदाता, 26.01 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाता और 7.50 लाख से अधिक डुप्लिकेट (एक से अधिक स्थानों पर दर्ज) मतदाता पाए गए हैं।
विरोध करने वालों की मुख्य चिंताएँ:
- बड़े पैमाने पर नाम काटने की आशंका: विरोध करने वाले दलों और नागरिक संगठनों को यह आशंका है कि 'अपने पते पर नहीं पाए गए' की श्रेणी में बड़ी संख्या में ऐसे पात्र मतदाता भी शामिल हो सकते हैं जो सत्यापन के समय घर पर मौजूद नहीं थे, या जिनके पते पर बीएलओ ठीक से नहीं पहुँचे। उनका डर है कि इन नामों को बिना उचित जाँच के हटा दिया जाएगा, जिससे बड़ी संख्या में लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
- प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर संदेह:
- बीएलओ की भूमिका: यह आरोप लगाया जा रहा है कि बीएलओ का सत्यापन कार्य पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं है और इसमें त्रुटियों की संभावना है। कुछ मामलों में राजनीतिक दबाव का भी आरोप लगाया जा रहा है।
- दावा और आपत्ति प्रक्रिया की जटिलता: यद्यपि निर्वाचन आयोग ने दावा और आपत्ति दर्ज कराने के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 तक का समय दिया है, लेकिन ग्रामीण और अशिक्षित आबादी के लिए यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है, जिससे वे अपने कटे हुए नाम वापस नहीं जोड़ पाएंगे।
- जातिगत या सांप्रदायिक लक्षीकरण का आरोप: कुछ विपक्षी दल और सामाजिक संगठन यह आरोप लगा रहे हैं कि यह अभियान विशेष रूप से कुछ जातियों या समुदायों के मतदाताओं को लक्षित करने और उनके नाम हटाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे आगामी चुनावों के परिणामों को प्रभावित किया जा सके।
- 2003 की मतदाता सूची का संदर्भ: निर्वाचन आयोग ने यह सुविधा दी है कि जिन मतदाताओं का नाम 2003 की मतदाता सूची में है, उन्हें गणना प्रपत्र भरते समय अतिरिक्त दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, कुछ लोगों का तर्क है कि 20 साल पुरानी सूची को आधार बनाना अपने आप में समस्याओं को जन्म दे सकता है क्योंकि इस अवधि में जनसंख्या और पतों में भारी बदलाव आया है।
- समय का दबाव और त्रुटियों की संभावना: आगामी चुनावों से ठीक पहले इतनी बड़ी कवायद पर समय का दबाव भी है। यदि प्रक्रिया जल्दबाजी में या अपर्याप्त संसाधनों के साथ पूरी की जाती है, तो त्रुटियों की संभावना बढ़ जाती है।
निर्वाचन आयोग का पक्ष:
निर्वाचन आयोग इन आरोपों का खंडन करता है और जोर देता है कि एसआईआर अभियान का एकमात्र उद्देश्य एक स्वच्छ और त्रुटिहीन मतदाता सूची तैयार करना है ताकि सभी पात्र नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। आयोग का कहना है कि मामले में जल्द बड़े खुलासे होंगे, जैसे की,
- हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक की जाएगी और उस पर आपत्ति दर्ज कराने का पूरा अवसर दिया जाएगा।
- यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी पात्र मतदाता छूटे नहीं और कोई भी अपात्र व्यक्ति शामिल न हो।
- प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और कानून के अनुसार की जा रही है।
मामला यही खत्म नहीं हुआ है, बिहार में 1 अगस्त, 2025 को प्रारूप मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। इसके बाद, एक महीने की अवधि (1 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 तक) के लिए दावा और आपत्ति दर्ज कराने का समय होगा। इस दौरान, जिन लोगों के नाम हटा दिए गए हैं या जिनके विवरण में त्रुटियाँ हैं, वे सुधार के लिए आवेदन कर सकते हैं। ऐसे में ये अहम होगा की आखिर इस मामले में और क्या कुछ खुलासे किए जाते है। जिससे आने वाले विधानसभा चुनाव में जरूर कुछ बड़ा देखने को मिलेगा।
(For more news apart from what is SIR why it is important in bihar election 2025 News In Hindi, stay tuned to Rozana Spokesman)