बिहार सरकार के योजनाओं की झांकी से भी डरती है मोदी सरकार : उमेश सिंह कुशवाहा
उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि गया का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है .जहां पितृतर्पण के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं .
पटना ,(संवाददाता): जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने लगातार सातवें वर्ष गणतंत्र दिवस पर निकलने वाली झांकियों में बिहार की झांकी के नहीं दिखने पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा की यह भाजपा के बिहार विरोधी रवैये की एक बानगी है .भाजपा द्वारा विपक्ष की राज्य सरकारों के प्रति अपनाए जाने वाले अलोकतान्त्रिक व्यवहार को बिहार और देश की जनता कत्तई बर्दाश्त नहीं करेगीl भाजपा लोक और तंत्र दोनों की गरिमा और मर्यादा को तार- तार करने में लगी है .
प्रदेश अध्यक्ष ने लगातार सातवें वर्ष गणतंत्र दिवस पर बिहार की झांकी दिल्ली में नहीं दिखायी पड़ने पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इन झांकियों से राज्यों की कला, संस्कृति और विकास को जानने- समझने का अवसर देश और दुनिया को मिलता हैl लाल किला के सामने राजपथ पर निकलने वाली झांकी को पूरी दुनिया देखती हैl भाजपा के नेता बात तो बड़ी- बड़ी करते हैं पर उनका सारा काम लोकतंत्र की जननी बिहार के विरुद्ध होता है .
उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को दिल्ली के राजपथ पर निकलने वाली झांकियों का चयन करने वाली केंद्र सरकार की एक्सपर्ट कमेटी ने बिहार सरकार द्वारा भेजी गयी झांकी को मानकों पर खरा नहीं उतरने का बहाना बनाकर खारिज कर दिया है जो काफी दुखद हैl राज्य सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने गया में फल्गु नदी पर बने रबड़ डैम को बिहार की झांकी के रूप में प्रस्तुत करने का प्रस्ताव भेजा था.
उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि गया का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है .जहां पितृतर्पण के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं . बसात के मौसम को छोडकर फल्गु नदी लगभग सालों भर सूखी रहती है फलस्वरूप पितृतर्पण के लिए आने वाले लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता थाl माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने लगभग 1312 करोड़ रुपये से बने देश के इस सबसे लंबे रबड़ डैम का नवम्बर 2022 में लोकार्पण किया थाl इसके बनने से पितृतर्पण करने पहुंचे लोगों को पानी की समस्या से मुक्ति मिली और पहली बार विष्णुपद मंदिर की घाट पर लोगों ने छठ व्रत भी मनाया .
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि 2022 के गणतंत्र दिवस समारोह के लिए भेजी गयी झांकी के प्रस्ताव का थीम “गांधी के पदचिह्नों पर अग्रसर बिहार” था, जिसे खारिज कर दिया गया थाl वर्ष 2021 व 2020 में जल- जीवन - हरियाली तथा 2019 में शराबबंदी की थीम पर भेजी गयी झांकी को स्थान नहीं मिला जबकि 2018 में छठ जैसे लोकआस्था के महापर्व पर भेजी गयी झांकी को भी अस्वीकृत कर दिया गया थाl वर्ष 2017 में विक्रमशिला जैसे प्राचीनतम शैक्षणिक संस्थान की थीम पर भेजे गए प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया गया था .
उन्होंने सवाल किया कि विकास का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी सरकार क्या विकास के नए प्रतिमान स्थापित करने वाली बिहार सरकार के योजनाओं की झांकी से डरती हैl क्या उनका भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व का एजेंडा सिर्फ वोट की राजनीति के लिए है? देश और दुनिया के लोगों को पितृतर्पण की सुविधा प्रदान करना से उनको चिढ क्यों है? महात्मा गांधी के उसूलों की सिर्फ बात करने वालों को दिल्ली में गांधी के विचारों को झांकी में दिखाने से नफरत क्यों है? भाजपा के नफरत की राजनीति को पूरा देश समझ रहा है और उन्हें इसका करारा जवाब बिहार और देश की जनता 2024 में देगी .