पितृगणों को मोक्ष एवं लोगो के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाला मुक्ति का महापर्व पितृपक्ष 28 सितम्बर से आरम्भ

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, बिहार

वैदिक  ग्रंथो में ऐसा प्रमाण है कि  गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति  मिलती है ।

photo

गया, (पंकज कुमार सिन्हा) : भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से लेकर आश्विन माह की अमवस्याकी  लगभग 17 दिवसीय अवधि  को ही पितृपक्ष कहा जाता है ।इस अवधि को मोक्ष का महा पर्व भी कहा जाता है क्यों कि  पितृ पक्ष के दिनों में लोग अपने पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध एम् तर्पण संपन्न करते हैं ।इससे उनके पूर्वजो को हर पाप से  मुक्ति प्राप्त होती है  पुरानो  में वर्णित  है कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पिंडदान सीधे पितरों तक पहुंचता है। माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं ताकि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर संतुष्ट हो सकें। पितृपक्ष के दिनों में लोग अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर उनका पिंडदान कर्म तर्पण और गरीबो को दान आदि –पुण्य कर्म करते हैं ताकि उनके पूर्वज प्रेत योनी की पीड़ा से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करें । मान्यता है कि जब लोग अपना शरीर त्याग कर चले जाते हैंएवं प्रेत योनी को प्राप्त होते हैं  तब उनकी आत्मा की शांति के लिए गयाजी में श्रद्धा से पिंडदान और तर्पण किया जाता है। वैदिक  ग्रंथो में ऐसा प्रमाण है कि  गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति  मिलती है । इसीलिए पिंडदान व श्राद्ध कर्म में बिहार का गया तीर्थ सर्वोपरि है । 

माँ बागला स्थान मंदिर सिद्ध पीठ गया व्यस्थापक सौरभ मिश्र ने बताया  कि ऐसे तो देश में कई  ऐसे स्थान हैं जिसमें पिंडदान और तर्पण किए जाने की परंपरा है लेकिन गया में पिंडदान का अलग महत्व है।  जो श्रद्धालु गया में पिंडदान करते हैं उनके 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं। इसीलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। गया की इसी महत्ता के कारण लाखों लोग हर साल यहां पर अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं। श्रीराम जी के वन जाने के बाद दशरथ जी का मृत्यु हो गयी थी। इस दौरान सीता जी ने गया में ही दशरथ जी की प्रेत आत्मा को पिंड दिया था। इसीलिए उस समय से इस स्थान को तर्पण और पिंडदान के लिए सर्वोपरि माना जाता है।  गयासुर ने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। 

•    जो भी लोग यहां पर किसी का तर्पण करने की इच्छा से पिंडदान करें उन्हें मुक्ति मिले। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं.

•    मान्यता है गया में पिंडदान करने से कोटि तीर्थ तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहां पर श्राद्ध करने वाले को कोई काल में पिंड दान कर सकते है। 
•    गया जी में माता सीता ने तर्पण किया था। गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है