Punjab and Haryana High Court News: 'मां-बाप की लड़ाई में बच्चे बनते हैं शिकार', हाई कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि एक बच्चे को, विशेष रूप से कम उम्र में, माता-पिता दोनों के प्यार, देखभाल और सुरक्षा का मौलिक अधिकार है।
Punjab and Haryana High Court News: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने, आठ साल के बच्चे की कस्टडी उसकी मां को सौंपने तथा उसके पिता को उससे मिलने का अधिकार दिया है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे के कल्याण और संर्वोत्तम हित में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बच्चा पिता के स्नेह और संगति से वंचित न रहे। जस्टिस कीर्ति सिंह ने कहा, जब माता-पिता के बीच मतभेद हो, तो बच्चे की भलाई सर्वोपरि होनी चाहिए। कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को एक ऐसी वस्तु के रूप में न देखा जाए जिसे आगे-पीछे किया जा सकता हो, बल्कि उसे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाए जिसकी स्थिरता और सुरक्षा को सावधानीपूर्वक संरक्षित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि एक बच्चे को, विशेष रूप से कम उम्र में, माता-पिता दोनों के प्यार, देखभाल और सुरक्षा का मौलिक अधिकार है। यह न केवल बच्चे के भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि इसे एक बुनियादी मानव अधिकार के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। कोर्ट को प्रत्येक माता-पिता द्वारा किए गए दावों का किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह और उद्देश्य से मुक्त होकर मूल्यांकन करने में सावधानी बरतनी चाहिए और बच्चे के सर्वोत्तम हित पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणियां गुरदासपुर की एक मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
मां ने आरोप लगाया कि वैवाहिक कलह के कारण उसको बुरी तरह पीटा गया तथा मायके जाते समय उसे बच्चे को अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। याचिका में कहा गया कि उसने एमएलआर की एक प्रति के साथ स्थानीय पुलिस से संपर्क किया था तथा अनुरोध किया था कि बच्चे की कस्टडी पति से लेकर याचिकाकर्ता को सौंप दी जाए। हालांकि, याचिकाकर्ता को कोई पुलिस सहायता प्रदान नहीं की गई। कोर्ट ने कहा, कस्टडी की लड़ाई में बच्चे अक्सर अपने माता-पिता के संघर्ष का अनजाने में शिकार बन जाते हैं।
कोर्ट का मुख्य उद्देश्य बच्चे के जीवन में व्यवधान को कम करना और दोनों माता-पिता के साथ निरंतरता सुनिश्चित करना है। उपरोक्त के आलोक में कोर्ट ने कहा कि बच्चा आठ वर्ष की कोमल आयु का है, इस कोर्ट का विचार है कि सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णय लिए जाने तक, बच्चे की अभिरक्षा याचिकाकर्ता-मां के पास रहेगी।
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