ओडिशा ट्रेन दुर्घटना: चर्चा में आई रेल सुरक्षा Kavach, क्या हादसे को रोक सकता था यह कवच ? जानें सबकुछ...
रेलवे ने कहा है कि शुक्रवार शाम जिस मार्ग पर दुर्घटना हुई वहां “कवच” प्रणाली उपलब्ध नहीं थी।
New Delhi: ओडिशा के बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना में कम से कम 261 यात्रियों की मौत और लगभग 1,000 यात्रियों के घायल होने के बाद रेलवे की स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली कवच चर्चा में आ गई है। रेलवे ने कहा है कि शुक्रवार शाम जिस मार्ग पर दुर्घटना हुई वहां “कवच” प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। वहीं CM ममता बनर्जी का कहना है कि अगर यह कवच ट्रैन में होती तो यह हादसा ही नहीं होता और सैकड़ों की जान बच जाती।
तो आइये कवच के बारे में जानते है ...
सतर्क करती है कवच
जब लोको पायलट फाटक पार करता है तो यह प्रणाली उसे सतर्क करती है। आम तौर पर देखा गया है कि सिगनल पार करते समय ट्रेनों की भिड़ंत होती है। कवच प्रणााली उसी लाइन पर दूसरी ट्रेन के आने की स्थिति में निर्धारित दूरी के भीतर ही स्वचालित रूप से ट्रेन को रोक सकती है।.
क्या है कवच ?
भारतीय रेलवे ने चलती ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए "कवच" नामक अपनी स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली विकसित की है। कवच को तीन भारतीय विक्रेताओं के सहयोग से अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है। कवच न केवल लोको पायलट को खतरे और तेज रफ्तार होने पर सिगनल से गुजरने से बचने में मदद करता है बल्कि घने कोहरे जैसे खराब मौसम के दौरान ट्रेन चलाने में भी मदद करता है। इस प्रकार, कवच ट्रेन संचालन की सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाता है।
कवच की मुख्य विशेषताएं
-अगर लोको पायलट ब्रेक लगाने में विफल रहता है तो कवच प्रणाली के तहत स्वचालित रूप से ब्रेक लग जाते हैं, जिससे गति नियंत्रित हो जाती है।
- इस प्रणाली के तहत पटरी के पास लगे सिग्नल की रोशनी कैबिन में पहुंचती है और यह रोशनी धुंध के मौसम में बहुत उपयोगी होती है। - इस प्रणाली से ट्रेन की आवाजाही की निगराने वाले को ट्रेन के बारे में लगातार जानकारी मिलती रहती है।.
- सिगनल पर अपने आप सीटी बजती है। लोको से लोको के बीच सीधे संचार के जरिए ट्रेनों के टक्कर की आशंका कम हो जाती है।.
- यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तो एसओएस के माध्यम से आसपास चल रही ट्रेनों को कंट्रोल किया जाता है।.
कवच का परीक्षण दक्षिण मध्य रेलवे के लिंगमपल्ली-विकाराबाद-वाडी और विकाराबाद-बीदर सेक्शन पर किया गया था, जिसमें 250 किलोमीटर की दूरी तय की गई थी।.
कवच प्रणाली तैयार करने में कुल 16.88 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।