हत्या मामले में आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार, केंद्र से मांगा जवाब
बिहार कारागार नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन को 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था।
New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की 1994 में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को समय से पहले रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को केंद्र एवं बिहार सरकार से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय, बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया। याचिका पर सुनवायी शुरू होते ही दिवंगत अधिकारी की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण मामला है। पीठ ने कहा कि वह याचिका पर नोटिस जारी कर रही है।
शीर्ष अदालत ने एक मई को याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी और इसे आठ मई के लिए सूचीबद्ध किया था। बिहार कारागार नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन को 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था।
जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में दलील दी है कि गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन को सुनाई गई उम्रकैद की सजा उनके पूरे जीवनकाल के लिए है और इसकी व्याख्या महज 14 वर्ष की कैद की सजा के रूप में नहीं की जा सकती।
उन्होंने उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में कहा है, ‘‘ जब मृत्युदंड की जगह उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, तब उसका सख्ती से पालन करना होता है, जैसा कि न्यायालय का निर्देश है और इसमें कटौती नहीं की जा सकती।’’ आनंद मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों में शामिल है, जिन्हें जेल से रिहा करने के लिए राज्य के कानून विभाग ने हाल में एक अधिसूचना जारी की थी, क्योंकि वे जेल में 14 वर्षों से अधिक समय बिता चुके हैं।
बिहार कारागार नियमावली में राज्य की महागठबंधन सरकार द्वारा 10 अप्रैल को संशोधन किये जाने के बाद आनंद मोहन की सजा घटा दी गई। नियमावली में संशोधन के जरिये ड्यूटी पर तैनात लोकसेवक की हत्या में संलिप्त दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर पाबंदी हटा दी गई थी।
राज्य सरकार के इस फैसले के आलोचकों का दावा है, ऐसा मोहन की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया, जो जाति से राजपूत हैं और इससे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को भाजपा के खिलाफ उसकी लड़ाई में मदद मिल सकती है। नेताओं सहित कई अन्य लोगों को राज्य के जेल नियमावली में संशोधन से लाभ हुआ है।
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना के रहने वाले जी. कृष्णैया की 1994 में उग्र भीड़ ने उस समय पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी। तब आनंद मोहन विधायक थे और शवयात्रा में शामिल थे।