राज्यसभा के सभापति के रूप में मैं व्यवधान देखता हूं, संवाद नहीं: उपराष्ट्रपति धनखड़
उन्होंने कहा, ‘‘सत्ता के उन गलियारों को साफ किया गया है।
New Delhi: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को अफसोस जताया कि न्यायपालिका और कार्यपालिका बेहतरी के लिए जरूरत से ज्यादा काम कर रही हैं, लेकिन विधायिका में स्थिति ‘निराशाजनक’ है। उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक क्षेत्र में लोगों को राजनीति करने के सभी अधिकार हैं, लेकिन जब देश के विकास की बात आती है, तो नेताओं को पार्टी के बंधनों से ऊपर उठना चाहिए।
धनखड़ ने यहां नई दिल्ली प्रबंधन संस्थान के 25वें वार्षिक दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि भारत की न्याय प्रणाली बहुत मजबूत है और सर्वश्रेष्ठ स्तर पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कार्यपालिका बेहतर काम करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जब विधायिका... आपके प्रतिनिधियों की बात आती है, तो परिदृश्य निराशाजनक होता है। राज्यसभा के सभापति के रूप में, मैं बहस, संवाद, चर्चा नहीं देखता हूं। मैं व्यवधान, अशांति देख रहा हूं।’’
उन्होंने छात्रों से कहा कि उन्हें एक ऐसी व्यवस्था बनानी होगी, जहां जो लोग काम करते हैं, जो अपने काम को सही साबित करते हैं, जो संवैधानिक उम्मीदों पर खरे उतरते हैं, उनकी सराहना हो। उन्होंने कहा कि लोगों को उन लोगों के खिलाफ बोलना होगा, जो अपने जनादेश को पूरा करने में विफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय और कार्यपालिका नतीजे दे रही है, तो विधायिका को क्यों विफल होना चाहिए। शासन के मुद्दे का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश की सत्ता के गलियारे कभी सत्ता के दलालों और बिचौलियों से भरे हुए थे।
उन्होंने कहा, ‘‘सत्ता के उन गलियारों को साफ किया गया है। सत्ता के दलालों की संस्था मर चुकी है, यह कभी पुनर्जीवित नहीं हो सकती।’’ धनखड़ ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही शासन की पहचान है। उन्होंने कहा, ‘‘यह सब एक अच्छे कारण से हो रहा है... भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है।’’ कुछ विपक्षी नेताओं की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर किसी पर कानून के उल्लंघन, भ्रष्टाचार या अपराध के लिए मामला दर्ज किया जाता है, तो क्या उन्हें सड़कों पर उतरना चाहिए या अदालत जाना चाहिए।