मणिपुर हिंसा: राष्ट्रपति से मिला कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल, उच्चस्तरीय जांच आयोग गठित करने का आग्रह
भारतीय सेना और असम राइफल्स की लगभग 140 टुकड़ियां पूर्वोत्तर के राज्य में स्थिति सामान्य करने के प्रयास में जुटी हैं।
New Delhi: मणिपुर में हाल में हुई हिंसा को लेकर मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और आग्रह किया कि हिंसा की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के किसी वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच आयोग का गठन होना चाहिए। प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा है जिसमें जांच आयोग गठित करने और शांति सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने समेत 12 मांगें की गई हैं।
इस प्रतिनिधिमंडल में खरगे के अलावा कांग्रेस के संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल, महासचिव मुकुल वासनिक, कांग्रेस के मणिपुर प्रभारी भक्त चरण दास, पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह और कुछ अन्य नेता शामिल थे।
खरगे ने ट्वीट किया, ‘‘हमने राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग करते हुए उन्हें ज्ञापन सौंपा है ताकि मणिपुर के सामने उत्पन्न असाधारण स्थिति का समाधान हो सके और तत्काल सामान्य स्थिति बहाल हो सके। एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस, मणिपुर में शांति बहाली के लिए उठाए जाने वाले किसी भी कदम का समर्थन करने के लिए तैयार है।’’
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘22 साल पहले भी मणिपुर जल रहा था। तब प्रधानमंत्री अटल (बिहारी वाजपेयी) जी थे। आज फिर से मणिपुर जल रहा है, अब प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी हैं। इसका कारण भाजपा की विभाजनकारी व ध्रुवीकरण की राजनीति है।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि मणिपुर जल रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कर्नाटक चुनाव में व्यस्त थे क्योंकि इनको मणिपुर की कोई परवाह नहीं थी।
पार्टी के मणिपुर प्रभारी भक्त चरण दास ने दावा किया, ‘‘केंद्र सरकार और राज्य सरकार चाहती तो मणिपुर में हिंसा थम सकती थी, लेकिन हिंसा को होने दिया गया। सत्ता में रहने के लिए हिंसा, भाजपा का माध्यम रही है। ’’
कांग्रेस ने राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में आग्रह किया कि चरमपंथी संगठनों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार को हर जरूरी कदम उठाना चाहिए तथा लापता लोगों का पता लगाने के लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए।
पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा कि विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास के लिए उचित कदम उठाया जाना चाहिए। ज्ञापन में प्रतिनिधिमंडल ने आग्रह किया है कि मणिपुर हिंसा की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के किसी वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय जांच आयोग का गठन होना चाहिए। विपक्षी दल ने यह भी कहा कि राहत शिविरो में रहने वाले बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित की जाए, जरूरी वस्तुओं की ढुलाई में आई रुकावटों को दूर किया जाए, राज्य सरकार सभी राहत शिविरों का प्रबंधन अपने हाथ में ले, मणिपुर से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों को अक्षरश: लागू किया जाए, समुदायों के बीच बातचीत के जरिये सौहार्द बढ़ाया जाए तथा शांति सुनिश्चित करने के लिए ठोस एवं तेज प्रयास किए जाएं।
मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा में 75 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
मणिपुर में ‘जनजातीय एकता मार्च’ के बाद पहाड़ी जिलों में पहली बार जातीय हिंसा भड़क उठी। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग को लेकर मैतेई समुदाय ने तीन मई को प्रदर्शन किया था जिसके बाद ‘जनजातीय एकता मार्च’ का आयोजन किया था। इसके बाद गत रविवार की हिंसा समेत अन्य हिंसक घटनाएं हुईं। रविवार की हिंसा में कम से कम पांच लोगों की मौत हुई है।
आरक्षित वन भूमि से कूकी ग्रामीणों को बेदखल करने को लेकर तनाव के चलते, पहले भी हिंसा हुई थी, जिसके कारण कई छोटे-छोटे आंदोलन हुए थे। मैतेई समुदाय मणिपुर की आबादी का करीब 53 प्रतिशत है और समुदाय के अधिकतर लोग इंफाल घाटी में रहते हैं। नगा और कुकी समुदायों की संख्या कुल आबादी का 40 प्रतिशत है और वे पर्वतीय जिलों में रहते हैं।
भारतीय सेना और असम राइफल्स की लगभग 140 टुकड़ियां पूर्वोत्तर के राज्य में स्थिति सामान्य करने के प्रयास में जुटी हैं। हर टुकड़ी में 10,000 कर्मी होते हैं। इसके अलावा अन्य अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को भी तैनात किया गया है।