गरीब बच्चों की पढाई, युवाओं की कमाई की उम्मीदों को तोड़ता है बजट : छात्र संघ अध्यक्ष गौतम सिंह
उन्होंने कहा कि प्रदेश में नौकरियां नीतियों के मायाजाल के कारण विलुप्त हैं।
Ranchi : राज्य सरकार के आम बजट से युवा खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। बजट में युवा की बेरोजगारी दूर करने के लिए न तो सरकारी विभागों में बहाली न ही इनके नियोजन की कोई ठोस प्रावधान दिखाई पड़ रहा है। युवा झारखंड से लोक लुभावन वादों का नारा देकर युवाओं के वोट के बलबूते राज्य में सरकार बनाने वाली झामुमो, कांग्रेस, राजद की महागठबंधन सरकार ने इस बजट में युवाओं की पूरी तरह उपेक्षा की है। उक्त बातें बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिल झारखंड छात्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष गौतम सिंह ने कही हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में नौकरियां नीतियों के मायाजाल के कारण विलुप्त हैं। सरकार का नियुक्ति वर्ष बीते 03 वर्षों से बगैर नियुक्ति दिए बीत गया। सरकार को युवाओं के लिए बजट में रोजगार के लिए ऋण मुहैया कराने सहित कल्याणकारी योजनाओं हेतु सरल प्रावधान करना चाहिए था। राज्य में बीते तीन वर्ष से तैयार हुए बेरोजगार युवाओं के फौज को हर क्षेत्र में अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, बजट युवाओं को समर्पित होना चाहिए। नियुक्तियों के लिए नीति के साथ साथ बजट में भी इसके लिए प्रावधान किए जाने चाहिए। पर वर्तमान बजट से सरकार के मंशा पर सवालिया निशान लगा है।
भारत के सभी राज्य शिक्षा पर अपनी GDP का 2–3% तक ही खर्च करते हैं। जबकि 60 वर्ष पूर्व ही कोठारी आयोग ने सरकार को शिक्षा पर GDP का 06 प्रतिशत के बराबर खर्च करने की सिफारिश की थी, यह 3.5 % से ज्यादा कभी नही बढ़ा। इस वर्ष GDP के 06-10% बराबर बजटीय प्रावधान करना चाहिए था जो बजट से गायब दिखा। या बजट शिक्षा के क्षेत्र में भी विफल साबित होगा।
बजट में कुशलता बढ़ाने के उपाय एवम शिक्षा व रोजगार संबंधी ऋण में टैक्स छूट देने की जरूरत थी। इसके साथ ही बजट में उच्च शिक्षा का खर्च घटाने की जरूरत है। देश में कई कंपनियां लोगों की कुशलता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, इस हिसाब से एजुकेशनल प्रोडक्ट टैक्स का बोझ कम करने की जरूरत है। इससे युवाओं की सस्ती कीमत में कुशलता बढ़ाने में मदद मिलेगी और वे देश के विकास में बड़ा योगदान कर पाएंगे। सरकार युवाओं से किए वादों से भाग रही है जो राज्य के लिए घातक साबित होगा।
आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा रहीं। खेल के क्षेत्र में भी महिलाओं ने भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है। खेल क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए विशेष ऐलान किया जाना चाहिए था। साथ ही साथ जेंडर बजटी में वृद्धि हो, महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए तथा स्कूल ड्रॉपआउट की समस्या से निपटारे हेतु विशेष पैकेज का ऐलान किया जाना चाहिए था।
सरकारी आंकड़ों को देखा जाए तो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। बजट में महिला सुरक्षा को लेकर विशेष प्रावधान की जरुरत है। यही मौजूदा समय की मांग भी है। साथ ही मध्यम एवं लघु उद्योगों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी लाभ मिला है और इसमें महिलाओं की भूमिका हमेशा से अहम रही है। एमएसएमई में महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ाने तथा आर्थिक सहयोग के लिए भी बजट में विशेष ऐलान किए जायेंगे, ऐसी आशा थी मगर सरकार ने बजट ने निराश किया।
किसानों, युवाओं व महिलाओं के समावेशी होना चाहिए था बजट। गरीब बच्चों के लिए पढाई, युवाओं के लिए कमाई व बीमार लोगों के लिए दवाई की समुचित व्यवस्था बजट में झलकनी चाहिए थी। महिलाओं की भागीदारी अनुपातिक रूप से व्यवसाय में कम है इसलिए उन्हें व्यवसायिक रूप से सुदृढ़ बनाने का प्रावधान बजट में दिखना चाहिए था। कुल मिलाकर यह बजट घोर निराशाजनक था।