लोकतंत्र के लिए चुनाव आयोग का निष्पक्ष रहना बहुत जरूरी: आभा सिन्हा
उन्होंने कहा कि अगर यह बिल कानून बन गया तो चुनाव आयोग स्वतंत्र न होकर सरकारी चुनाव आयोग में तब्दील हो जाएगा।
रांची (संवादाता) : झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी की प्रवक्ता आभा सिन्हा ने कहा है कि केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा शर्तों और कार्यकाल को विनियमित करने के लिए राज्यसभा में जो विधेयक पेश किया है कि अगर यह बिल कानून बन गया तो इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा। लोकतंत्र के लिए चुनाव आयोग का निष्पक्ष रहना बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा कि विधेयक में प्रस्ताव है कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के पैनल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, जो देशहित में नहीं है।
उन्होंने कहा कि अगर यह बिल कानून बन गया तो चुनाव आयोग स्वतंत्र न होकर सरकारी चुनाव आयोग में तब्दील हो जाएगा। लोकतंत्र के इतिहास में संसद में यह एक काला दिन था। चुनाव आयोग भारत में स्वतंत्र और लोकतांत्रिक चुनाव कराने वाली अंतिम स्वतंत्र संस्था है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे मोदी चुनाव आयोग बनाना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साफ कहा है कि अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं होगा तो देश में लोकतंत्र कायम नहीं रह सकता। इसलिए, मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया गया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश, प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता शामिल थे, ताकि संतुलन बना रहे।
उन्होंने कहा कि सरकार इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के फैसले को रद्द करने की घिनौनी साजिश रच रही है। इस कानून के लागू होने के बाद चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं रह पाएगा, क्योंकि अब मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, उनके एक मंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा की जाएगी। यानी दो लोग सरकार से होंगे और एक विपक्ष से और पूर्ण बहुमत के साथ वे जिसे चाहें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त बना सकेंगे। भारत के संविधान में शक्तियों का पृथक्करण है यानी न्यायपालिका और कार्यपालिका एक-दूसरे की शक्ति नहीं छीन सकतीं, लेकिन अब इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जो संतुलन बनाया था उसे खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने कहा कि यदि यह बिल कानून बन जाता है तो इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी और चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली बन जायेगा। चुनाव आयोग में सरकार के पसंदीदा लोगों को नियुक्त किया जाएगा। यह बिल और कानून पूरी तरह से अवैध है और इसे अवैध तरीके से राज्यसभा में पेश किया गया ताकि विपक्ष और देश की आवाज नहीं सुनी जा सके।
बिल में प्रस्तावित प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल पर आपत्ति क्या है?
उन्होंने कहा कि इस बिल के पास होने पर इससे सरकार का अपना मुख्य चुनाव आयुक्त, चुनाव आयुक्त, चुनाव आयोग और नतीजे होंगे। न लोकतंत्र की जरूरत, न सुप्रीम कोर्ट की जरूरत, न संसद की जरूरत, यह लोकतंत्र को बंधक बनाने का कानून है, क्योंकि जब चुनाव आयोग की स्वायत्तता ही नहीं रहेगी तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?