विपक्ष ने अपना फ्लोर टेस्ट खुद कराया : संजय सेठ

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, झारखंड

सांसद अपने अपने क्षेत्र से जुड़ी समस्याएं सदन के माध्यम से सरकार के समक्ष रख सके।  

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Ranchi: कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों के द्वारा लोकसभा का मानसून सत्र बाधित किए जाने, व व्यवधान उत्पन्न करने को लेकर रांची सांसद संजय सेठ ने अपने केंद्रीय कार्यालय में पत्रकार वार्ता की। इस पत्रकार वार्ता में सांसद सेठ ने कहा कि लोकसभा का मानसून सत्र 20 दिनों का बुलाया गया था। यह 20 दिन इसलिए ताकि देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हो सके। सांसद अपने अपने क्षेत्र से जुड़ी समस्याएं सदन के माध्यम से सरकार के समक्ष रख सके।  

कई महत्वपूर्ण बिल विधेयक पास हो सके परंतु कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों के द्वारा सदन को बाधित करने का जो कुत्सित कार्य किया गया, यह लोकतंत्र में अक्षम्य अपराध है। भले ही वह सदन से माफी मांग ले परंतु इस देश की जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी क्योंकि जब सदन चलता है तो उसके एक - एक मिनट का महत्व होता है। विधेयक पास होते हैं। कई मुद्दों पर चर्चा होती है परंतु विपक्ष ने ऐसा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया, जैसे उन्हें सदन से कोई मतलब ही नहीं। भ्रामक और दुष्प्रचार करते रहे। इस वजह से चार संसद सदस्यों को निलंबित भी किया गया, बावजूद इसके इनकी हरकतों में कोई सुधार नहीं हुआ। मणिपुर के जिस मुद्दे को लेकर यह लोग चर्चा की मांग कर रहे थे, संसद शुरुआत होने के साथ ही गृहमंत्री अमित शाह ने इस पर चर्चा करने की बात स्वीकार कर ली थी। और यह भी कहा था कि जितनी लंबा चाहे चर्चा कर सकते हैं। कोई समस्या नहीं है। बावजूद इसके विपक्षी सदस्यों के द्वारा हंगामा जारी रखा गया। यहां तक कि जब गृहमंत्री भी इस मुद्दे पर सदन में अपनी बात रख रहे थे, सभी सदस्यों ने सदन को बाधित किया। अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए।

सारा सच जानने के बावजूद आदरणीय प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  ने इनके अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार किया और सदन में ढाई घंटे तक बोलते रहे। वहां भी दुर्भाग्य था, लोगों को प्रधानमंत्री को सुनना भी उचित नहीं लगा। इस देश के विपक्षियों का यही आचरण है। दरअसल जो अविश्वास प्रस्ताव और फ्लोर टेस्ट विपक्षी दल कर रहे थे, वह फ्लोर टेस्ट मोदी सरकार का नहीं था। वह फ्लोर टेस्ट विपक्ष का था। इससे पहले ही कागज कलम, बैट बॉल सब कुछ छोड़ कर विपक्षी मैदान से भाग गए। पूरे देश ने देखा, सत्ता के भूखे इन विपक्षियों को तो देश की चिंता है। ना तो मणिपुर की चिंता है। न तो झारखंड की चिंता है। कहीं की चिंता नहीं है। सिर्फ और सिर्फ अपनी चिंता है।

 सेठ ने कहा कि विपक्षियों के द्वारा तमाम प्रकार के व्यवधान उत्पन्न किए जाने सदन को नहीं चलने देने की स्थिति तैयार करने, अमर्यादित आचरण करने के बावजूद इस सत्र में मैंने अपने क्षेत्र की बातों को रखा। अपने सवालों को रखा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मैंने कैंसर से संबंधित एक मामला लोकसभा में रखा और सरकार से आग्रह किया की कैंसर को अधिसूचित बीमारियों की श्रेणी में शामिल किया जाए ताकि कैंसर मरीजों की ट्रेकिंग आसान हो। उनका उपचार आसान हो। और सस्ते में उनका उपचार हो सके। इसके अलावा चांडिल डैम जो चार दशक पहले बना है, आज भी वहां के विस्थापित न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। मैंने इस मुद्दे पर भी सरकार से मांग किया कि चांडिल डैम बनने की प्रक्रिया आरंभ होने से लेकर अभी तक की स्थिति की सीबीआई से जांच कराई जाए।

हम सब ने देखा है देश में भी एक बड़ी समस्या भर रही है, वह पत्थरबाजी की समस्या। राष्ट्रीय स्तर पर पत्थरबाजी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। ऐसा लग रहा है जैसे राष्ट्र विरोधी तत्व पत्थरबाजों को प्रशिक्षण देते हैं। क्योंकि कश्मीर से लेकर झारखंड की राजधानी रांची से लेकर साहिबगंज तक पत्थरबाजी का स्टाइल देखेंगे तो बिल्कुल एक ही तरीका होता है। मैंने सरकार से आग्रह किया है कि राष्ट्रीय स्तर का कानून बनाया जाए ताकि इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जा सके।

मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में मैंने कई सवाल पूछे। जिसमें कुल 18 मंत्रालयों के द्वारा मुझे मेरे प्रश्नों का जवाब दिया गया।  सेठ ने कहा कि मुझे आश्चर्य हुआ कि केंद्र सरकार दोनों हाथ खोलकर झारखंड के विकास के लिए पैसे दे रही है परंतु राज्य सरकार उसे पर क्या कर रही है, यह समझ से परे है। जल जीवन मिशन के तहत भारत सरकार ने झारखंड को 10000 करोड रुपए दिए और आश्चर्य की है सरकार महज 3000 करोड रुपए खर्च कर पाई। सोचने वाली बात है कि 70 फ़ीसदी राशि खर्च करने में सरकार विफल रही। आखिर किस मुंह से राज्य सरकार के नुमाइंदे भारत सरकार पर आरोप लगाते हैं।

शिशुओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, गर्भवती महिलाओं के पोस्टिक आहार हेतु, उनके बेहतर स्वास्थ्य हेतु भारत सरकार ने 397 करोड रुपए की राशि राज्य को प्रदान की है। यह भी एक बड़ी राशि है, जिसका उपयोग राज्य सरकार को बेहतर तरीके से करना चाहिए।
विगत 2 वर्षों में झारखंड में 89 प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले गए हैं। जो बहुत बड़ी संख्या है। इन जन औषधि केंद्रों में 50 से 90 फ़ीसदी सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराई जाती हैं। सबसे सुखद बात यह है कि बाजार में जो लोग यह अफवाह उड़ाते हैं कि जन औषधि केंद्र की दवाएं कारगर नहीं है। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जिन मानकों के तहत ब्रांडेड दवाइयां बनाई जाती हैं। उन्हें मानकों के तहत इन दवाओं का भी निर्माण किया जाता है। इसलिए इन दवाओं के उपयोग में कहीं से कोई परेशानी या समस्या नहीं है।

आयुष्मान भारत योजना के तहत आदरणीय नरेंद्र मोदी जी ने देश के नागरिकों को ₹500000 तक की मुफ्त स्वास्थ्य बीमा का लाभ दिया। इसके तहत झारखंड में 721 अस्पताल निबंधित किए गए हैं, जहां आयुष्मान कार्ड के माध्यम से उपचार किया जाता है। इतना ही नहीं कैंसर से संबंधित 593 प्रकार की उपचार प्रक्रिया को इसमें रखा गया है। ताकि कैसी भी समस्या हो, इस देश के आम लोग गरीब नागरिक आराम से अपना उपचार करा सकें।

पीएम कुसुम योजनाएं वैसी योजना है, जो किसानों को ऊर्जा और पानी की गारंटी देता है। प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए यह योजना लाई थी। इसके तहत 36 करोड़ की लागत से झारखंड में 36000 योजनाओं की स्वीकृति दी गई परंतु दुर्भाग्य है किस राज्य में 12000 योजनाओं पर ही काम हो पाया। राज्य सरकार की लापरवाही कहें या अनदेखी कहें कि कई योजनाएं अब तक लंबित पड़ी हुई है।