न्याय व्यवस्था और न्याय की कार्यवाही आम जनता समझे; इसके लिए कई बिंदुओं पर काम कर रही है सरकार

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, झारखंड

65000 शब्दों की विधिक शब्दावली को जनता के लिए उपलब्ध कराने हेतु डिजिटाइज करने की प्रक्रिया चल रही है।

The government is working on many points to make the general public understand the judicial system and the proceedings of justice.

रांची: भारत में न्याय और न्याय की भाषा आम जनता समझ सके, इसके लिए 65000 शब्दों की विधिक शब्दावली को जनता के लिए उपलब्ध कराने हेतु डिजिटाइज करने की प्रक्रिया चल रही है। इसके साथ ही क्राउड सोर्सिंग के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाने की भी प्रक्रिया चल रही है। यह जानकारी केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री  किरण रिजिजू ने लोकसभा में दी। 

लोकसभा में सांसद  संजय सेठ ने यह सवाल किया था कि भारत के बच्चों को हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में कानूनी शिक्षा मिले, न्यायालय के कार्य हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में हों, इसके लिए कोई योजना बनाई गई है क्या। सांसद ने आग्रह किया था कि इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है ताकि आम लोग भी न्यायालय के निर्णय को पढ़ और समझ सकें। 

 सांसद के सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विधिक शिक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए बेहतरीन प्रक्रियाओं का कार्य प्रणाली और नई तकनीकों को अपनाया जाएगा ताकि सबके लिए न्याय सुलभ और सुनिश्चित हो सके। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के संवैधानिक मूल्यों से संवर्धित एवं उनके आलोक में बनाया जाए।, इस दिशा में काम चल रहा है। 

लोकतंत्र कानून के शासन और मानवाधिकारों के माध्यम से राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की दिशा में निर्देशित किए जाने को लेकर शिक्षा मंत्रालय के साथ उच्चतर शिक्षा विभाग और विधि और न्याय विभाग काम कर रहा है। केंद्रीय मंत्री ने संसद में बताया कि राज्य संस्थानों को भविष्य के वकीलों और न्यायाधीशों के लिए भाषा की पेशकश पर विचार करें, इसके लिए सुझाव दिए गए हैं। जिसमें एक भाषा अंग्रेजी और दूसरी उस राज्य की भाषा हो, जिसमें यह विधिक शिक्षा संस्थान स्थित है। इससे अंग्रेजी के साथ-साथ संबंधित राज्यों की क्षेत्रीय भाषा में कानून की पढ़ाई विद्यार्थी कर सकेंगे। केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि मंत्रालय विधिक दस्तावेजों में अक्सर प्रयोग किए जाने वाले शब्दों की पहचान करने की प्रक्रिया में है। सामान्य मूल से शब्दों को बढ़कर एक सकर्मक शब्दावली बनाने की प्रक्रिया चल रही है। यह शब्दावली सभी भारतीय भाषाओं के लिए अनुकूल होगी। इसका लाभ यह होगा कि भारतीय भाषा से दूसरी भारतीय भाषा विधिक दस्तावेजों का अनुवाद आसान हो सकेगा। 

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि मंत्रालय विधि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और न्यायपालिका के प्रतिनिधियों के साथ न्यायालयों और विधिक शिक्षा में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए 10 वर्षीय योजना तैयार हो, इसके लिए एक बैठक बहुत जल्द की जाएगी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया नहीं विधिक शिक्षा में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने की सिफारिश करने के लिए भारत के मुख्य न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त)  एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता में एक समिति का गठन भी किया गया है। केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि संविधान के अनुच्छेद 348 और राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 7 के अनुसार उच्च न्यायालयों में हो रही कार्यवाही और नियमों को हिंदी तथा अन्य भाषा के वैकल्पिक प्रयोग के लिए संबंधित राज्य स्वतंत्र हैं। उपरोक्त बिंदुओं के अधीन राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के उच्च न्यायालयों की कार्रवाई में हिंदी के वैकल्पिक प्रयोग को 50 से 70 के दशक में प्राधिकृत भी कर दिया गया है। 

 मंत्री के जवाब के बाद सांसद ने बताया कि आदरणीय नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हर क्षेत्र में बदलाव दिखेगा। न्याय और न्याय व्यवस्था की भाषा आम नागरिकों को समझ में आए, इसे लेकर माननीय प्रधानमंत्री खुद गंभीर है। बहुत जल्द इस दिशा में सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे।