Chandigarh news: पंजाब सरकार को बड़ा झटका: हाई कोर्ट ने पेंशन कटौती का फैसला किया रद्द

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, पंजाब

हजारों पेंशनभोगियों को राहत, सरकार को देना होगा बकाया भुगतान

Punjab government pension cut decision High Court cancels news in hindi

Chandigarh news: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक फैसले में पंजाब सरकार के 17 अगस्त 2009 के वित्त विभाग के मेमो को आंशिक रूप से अवैध करार देते हुए पेंशन में कटौती के परविधान को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 33 वर्ष की न्यूनतम सेवा अवधि पूरी न करने पर पेंशन में कटौती  की शर्त को बिना उचित मंजूरी के जोड़ा गया था जो गैरकानूनी है।

इस फैसले से राज्य के हजारों पेंशनभोगियों को राहत मिली है, जो वर्षों से इस अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। याचिकाकर्ता बलदेव सिंह बराड़ व अन्य ने हाई कोर्ट में दायर याचिका में दलील दी थी कि पंजाब सरकार ने पांचवें पंजाब वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते समय नियमों में बदलाव कर मनमाने तरीके से पेंशन में कटौती कर दी।

सरकारी रिकार्ड से यह स्पष्ट हुआ कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली अनुमोदन समिति ने 27 मई 2009 को केंद्र सरकार की पेंशन संबंधी सिफारिशों के अनुरूप पेंशन तय करने का फैसला लिया था।

लेकिन जब पंजाब सरकार ने 17 अगस्त 2009 को वित्त विभाग का मेमो जारी किया, तो उसमें 33 साल की न्यूनतम सेवा अवधि पूरी न करने पर पेंशन में कटौती का परविधान जोड़ दिया गया, जिसे अनुमोदन समिति ने मंजूरी नहीं दी थी।

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यह परविधान सरकार द्वारा मनमाने तरीके से जोड़ा गया, जिससे हजारों सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन में कटौती हो गई।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि पंजाब सरकार ने बिना किसी कानूनी आधार के यह नियम जोड़ा, जिससे कई पेंशनभोगियों की सेवानिवृत्ति उपरांत वित्तीय स्थिति पर गंभीर प्रभाव पड़ा।

राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि पंजाब में केंद्र सरकार की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं और राज्य सरकार अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।

सरकार का तर्क था कि वित्त मंत्री की मंजूरी के बाद ही अंतिम अधिसूचना जारी की गई थी।

हालांकि, जब कोर्ट  ने सरकार से इस कटौती को लेकर अनुमोदन समिति की स्वीकृति का सबूत मांगा, तो सरकार इसे साबित नहीं कर पाई। कोर्ट  ने पाया कि राज्य सरकार ने अनुमोदन समिति की मंजूरी के बिना ही 33 वर्ष की न्यूनतम सेवा की शर्त लागू कर दी। जस्टिस विनोद एस  भारद्वाज  ने सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा कि सरकार का यह निर्णय गैरकानूनी है और पेंशनभोगियों के अधिकारों का हनन करता है।

 कोर्ट ने अपने आदेश में  पेंशन में कटौती का परविधान अवैध घोषित किया गया और उसे तुरंत हटाने का आदेश दिया गया।

कोर्ट ने  याचिकाकर्ता की पेंशन का पुनर्मूल्यांकन कर तीन  महीने के भीतर बकाया राशि तय करने को कहा गया।

कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया गया कि दो  महीने के भीतर याचिकाकर्ता को बकाया राशि का भुगतान किया जाए।

 यदि भुगतान में देरी होती है, तो 6 प्रतिशत  वार्षिक ब्याज के साथ बकाया राशि चुकानी होगी। कोर्ट के आदेशानुसार  जिम्मेदार अधिकारी पर 50,000  रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा, जिसे चंडीगढ़ पीजीआई के गरीब मरीज कल्याण कोष में जमा करना होगा।

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