Diwali 2025: चाइनीज झालरों की चकाचौंध ने दियों की चमक छीनी, कुम्हारों की बढ़ी चिंता

Rozanaspokesman

राष्ट्रीय, पंजाब

मिट्टी से बने सामान का पूरा मूल्य बाजार में नहीं मिलता।

The dazzling glare of Chinese chandeliers has taken away the shine of diyas news in hindi

Punjab News: त्योहारों के दिन शुरू हो गए हैं, जिससे बदलते मौसम ने भी शहरों, गांवों और बाज़ारों में रौनक ला दी है। त्योहारों के दिनों की शुरुआत के साथ ही मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के चेहरों पर भी खुशी देखी जा सकती है।  रोजाना स्पोक्समैन प्रवक्ता के पत्रकार गुरप्रीत सिंह ने फरीदकोट ज़िले के औलख गांव के एक परिवार से बात की, जो मिट्टी के बर्तन और दीये बनाने के पेशे से जुड़े हैं। इस पूरी बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी तमाम मुश्किलों के बारे में बताया।

उन्होंने बताया कि पहले हमारे द्वारा बनाए गए मिट्टी के सामान आम लोग रोज़मर्रा के इस्तेमाल के लिए खरीदते थे, लेकिन बदलते दौर ने हमारे काम को बहुत प्रभावित किया है और अब इस काम से जीविकोपार्जन करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो गया है।

इस अवसर पर बोलते हुए हरिचंद ने कहा कि यह हमारा पुश्तैनी काम है, पढ़े-लिखे होने के बावजूद हमें कोई काम नहीं मिला, इसलिए हम अपना पुश्तैनी काम कर रहे हैं, लेकिन बाज़ार में हमारे काम की उतनी कद्र नहीं है क्योंकि बाज़ार में बहुत ज़्यादा चाइनीज़ और फैंसी सामान आ गया है और लोग देसी मिट्टी के बर्तनों और मिट्टी के दीयों से दूर होते जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मिट्टी के बर्तन या दीये बनाने में बहुत मेहनत लगती है। सबसे पहले इन बर्तनों या दीयों को बनाने के लिए हमें मिट्टी ख़रीदनी पड़ती है। इसके बाद दीये आदि तैयार करके पकाए जाते हैं, जिसके लिए हमें ईंधन भी क़ीमत देकर ख़रीदना पड़ता है। इसके बाद इन्हें रंगा जाता है और सजाया जाता है। जब दीये या गमले आदि बनकर तैयार हो जाते हैं, तो हमें बाज़ार में इनकी सही क़ीमत नहीं मिलती। जबकि इन्हें पूरी तरह से तैयार करने में काफ़ी लागत आती है। इस अवसर पर बोलते हुए सोनू सिंह ने कहा कि हमें इस काम को आगे बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ़ से लोन भी नहीं दिया जाता और हमारे पास जगह की भारी कमी है। 

उन्होंने कहा कि हमारे कई बच्चे पढ़-लिख गए हैं और कई निजी क्षेत्रों में भी काम कर रहे हैं, लेकिन हमारे किसी भी बच्चे को सरकारी नौकरी नहीं मिली है। उन्होंने सरकार से अपील की कि हमारे कुम्हार समुदाय की ओर भी थोड़ा ध्यान दिया जाए और सरकार हमारे बच्चों को रोज़गार मुहैया कराए। इसके साथ ही उन्होंने लोगों से अपील की कि हम किसी भी फैंसी आइटम के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन वे हमारे द्वारा तैयार की गई मिट्टी की चीज़ें ज़रूर खरीदें।

उन्होंने कहा कि जिस तरह दिवाली के मौके पर सरसों का तेल डालकर मिट्टी के दीयों को जलाया जाता है, ऐसा करने से न सिर्फ़ हमारे काम को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि पर्यावरण भी स्वच्छ रहेगा क्योंकि सरसों का तेल जलाने से पर्यावरण स्वच्छ होता है।

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