Punjab Haryana HC: इंटर्नशिप के नाम पर फीस वसूली गैरकानूनी, निजी वेटरनरी कॉलेजों को छात्रों की राशि लौटाने का आदेश
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, इंटर्न डॉक्टरों के शोषण पर सख़्त रुख
Punjab Haryana HC: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वेटरनरी शिक्षा से जुड़े एक अहम और दूरगामी प्रभाव वाले निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि बी.वी.एससी. एंड एएच पाठ्यक्रम के दौरान इंटर्नशिप अवधि में किसी भी निजी वेटरनरी कॉलेज द्वारा ट्यूशन फीस वसूलना कानूनन अस्वीकार्य और शोषणकारी है। कोर्ट ने ऐसे कॉलेजों को आदेश दिया है कि वे इंटर्नशिप के दौरान छात्रों से वसूली गई पूरी ट्यूशन फीस तीन माह के भीतर वापस करें।
यह फैसला न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति रोहित कपूर की खंडपीठ ने सहित अन्य संबद्ध याचिकाओं पर सुनाया। अदालत ने कहा कि इंटर्नशिप “पढ़ाई” नहीं बल्कि पूर्णकालिक सेवा है, जिसमें छात्र अस्थायी रूप से पंजीकृत वेटरनरी डॉक्टर के रूप में कार्य करते हैं और उन्हें इसके लिए मानदेय (इंटर्नशिप अलाउंस) दिया जाना अनिवार्य है।
कोर्ट की सख़्त टिप्पणी: जो सीधे नहीं, वह परोक्ष रूप से भी नहीं
अदालत ने वेटरनरी काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि इंटर्नशिप अवधि में छात्र आपातकालीन सेवाओं, नाइट ड्यूटी, रविवार व छुट्टियों में भी अस्पतालों और क्लीनिकों में सेवाएं देते हैं। ऐसे में उनसे ट्यूशन फीस लेना न केवल नियमों के विरुद्ध है, बल्कि यह इंटर्नशिप अलाउंस को अप्रत्यक्ष रूप से वापस लेने जैसा है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि “जो काम सीधे नहीं किया जा सकता, उसे परोक्ष रूप से भी अनुमति नहीं दी जा सकती।”
खंडपीठ ने यह भी रेखांकित किया कि गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी तथा उसके अधीन सरकारी कॉलेज इंटर्नशिप अवधि में किसी भी प्रकार की ट्यूशन फीस नहीं लेते, बल्कि छात्रों को मानदेय देते हैं। इसके विपरीत, निजी कॉलेजों द्वारा फीस वसूली को अदालत ने “अनुचित लाभ” और “छात्रों का आर्थिक शोषण” करार दिया।
निजी कॉलेजों की दलीलें खारिज
निजी कॉलेज की इस दलील को भी अदालत ने स्वीकार नहीं किया कि वह एक अनुदानरहित संस्थान है और अपनी फीस संरचना तय करने के लिए स्वतंत्र है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के मामलों का हवाला देते हुए कहा कि फीस निर्धारण की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि संस्थान छात्रों का शोषण करें या मुनाफाखोरी में लिप्त हों।
क्या नहीं माना कोर्ट ने
हालांकि, कोर्ट ने इंटर्नशिप अलाउंस की दर बढ़ाने संबंधी मांग पर कोई सीधा आदेश पारित नहीं किया। अदालत ने कहा कि फिलहाल इंटर्नशिप के लिए न्यूनतम या समान दर तय करने का कोई वैधानिक ढांचा मौजूद नहीं है। इस विषय पर नीति बनाना संबंधित सक्षम प्राधिकरण का कार्यक्षेत्र है।
अदालत ने याचिकाएं आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निजी कॉलेज को निर्देश दिया कि इंटर्नशिप अवधि में वसूली गई पूरी ट्यूशन फीस केवल याचिकाकर्ता छात्रों को तीन महीने के भीतर लौटाई जाए।
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