Raksha Bandhan: क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन, जानें इससे जूड़ी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
राखी का यह धागा सिर्फ एक रेशम का धागा नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और सुरक्षा का बंधन है।
Why Is Raksha Bandhan Celebrated News In Hindi: रक्षाबंधन का पावन पर्व, भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है, जिसे हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। राखी का यह धागा सिर्फ एक रेशम का धागा नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और सुरक्षा का बंधन है। इस त्योहार की जड़ें हमारे इतिहास और पौराणिक कथाओं में बहुत गहरी हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण कहानियाँ, जिन्होंने इस पर्व को इतना खास बनाया है।
1. कृष्ण और द्रौपदी की कहानी
यह रक्षाबंधन से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है, जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। एक बार की बात है, भगवान श्रीकृष्ण शिशुपाल का वध कर रहे थे, तभी उनकी तर्जनी उंगली में चोट लग गई और खून बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। द्रौपदी के इस निःस्वार्थ प्रेम को देखकर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने द्रौपदी को वचन दिया कि वह हर संकट में उसकी रक्षा करेंगे। बाद में, जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से द्रौपदी की लाज बचाकर अपना वचन निभाया। इसी घटना को रक्षासूत्र के महत्व का प्रतीक माना जाता है।
2. इंद्र और इंद्राणी की कथा
भविष्य पुराण में एक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। असुरों की शक्ति बढ़ती जा रही थी और देवराज इंद्र की पराजय होने लगी। इंद्र अपनी हार से भयभीत होकर गुरु बृहस्पति के पास गए। तब गुरु बृहस्पति के कहने पर इंद्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने मंत्रों से एक रेशम का धागा पवित्र करके इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस रक्षासूत्र के प्रभाव से इंद्र को शक्ति मिली और उन्होंने युद्ध में असुरों को पराजित कर विजय प्राप्त की। माना जाता है कि यह पहली बार था जब किसी पत्नी ने अपने पति की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधा।
3. राजा बलि और माता लक्ष्मी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी, तो राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपने साथ रहने का वचन लिया। जब भगवान विष्णु, बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए, तो माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं। तब उन्होंने एक गरीब स्त्री का वेश धारण कर राजा बलि को राखी बांधी और उन्हें अपना भाई बना लिया। बदले में राजा बलि से उन्होंने भगवान विष्णु को वापस बैकुंठ भेजने का वचन मांगा। इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि रक्षाबंधन का रिश्ता सिर्फ रक्त संबंध तक ही सीमित नहीं है।
4. रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ
यह ऐतिहासिक कथा रक्षाबंधन के महत्व को एक नए आयाम तक ले जाती है। मध्ययुगीन भारत में, चित्तौड़ की रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की खबर मिली, तो वह घबरा गईं। रानी बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में सक्षम नहीं थीं। ऐसे में उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी और अपनी प्रजा की रक्षा की गुहार लगाई। हुमायूँ, जो उस समय गुजरात में थे, ने रानी की राखी स्वीकार की और तुरंत अपनी सेना लेकर मेवाड़ की ओर कूच कर दिया। हालांकि, वे समय पर नहीं पहुंच पाए, लेकिन इस घटना ने भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम की।
5. सिकंदर की पत्नी और राजा पुरु
एक अन्य ऐतिहासिक कहानी यूनानी शासक सिकंदर और भारतीय राजा पुरु से जुड़ी है। जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया, तो उनकी पत्नी ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना। उन्हें डर था कि युद्ध में उनके पति को राजा पुरु से हार का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, उन्होंने राजा पुरु को राखी भेजकर उनसे अपने पति की रक्षा करने का अनुरोध किया। राजा पुरु ने सिकंदर की पत्नी को बहन मानकर उनकी राखी का सम्मान किया और युद्ध के दौरान सिकंदर को जीवनदान दिया।
इन सभी कहानियों से यह स्पष्ट होता है कि रक्षाबंधन का पर्व सिर्फ भाई-बहन के बीच के रिश्ते तक ही सीमित नहीं है। यह प्रेम, विश्वास, सम्मान और एक-दूसरे की रक्षा का प्रतीक है, जो हर रिश्ते और समाज में सौहार्द का संदेश देता है।
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