मानवीय भावनाओं का अनुवाद सीखने में एआई को समय लगेगा, लेकिन निश्चित रूप से यह एक खतरा : विशेषज्ञ

Rozanaspokesman

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जिस तेजी से यह कुशलता हासिल करता जा रहा है उससे निश्चित रूप से एक संकट पैदा हो सकता है।.

AI will take time to learn to translate human emotions, but definitely a threat: Expert

New Delhi: अनुवाद की दुनिया में कत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के बढ़ते दखल के बीच विशेषज्ञों का मानना है कि "मशीन" का प्रयोग केवल अनुवाद के लिए नहीं, बल्कि अनुवाद करते समय अधिक जानकारी पूर्ण और जागरूक होने के लिए किया जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि साहित्य के क्षेत्र में कत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित "टूल्स" को मानवीय भावनाओं का अनुवाद सीखने में अभी समय लगेगा, लेकिन जिस तेजी से यह कुशलता हासिल करता जा रहा है उससे निश्चित रूप से एक संकट पैदा हो सकता है।.

गैर गल्प लेखक, कोलकाता स्थित अनुवादक वी. रामास्वामी ने अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के मौके पर ''भाषा'' के साथ बातचीत में कहा, ‘‘ मशीन की शब्दावली बहुत सीमित है। हां, कोई गूगल अनुवाद का उपयोग कर सकता है और फिर उसे ठीक और संपादित कर सकता है। ऐसा किया भी जा रहा है। लेकिन मुझे लगता है कि गलत अनुवाद को दोबारा ठीक करने की तुलना में स्वयं से इसका अनुवाद कहीं अधिक जल्दी होता है। अतः मानव अनुवादक की आवश्यकता बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है।’’.

मनोरंजन ब्यापारी द्वारा बंगाली में लिखित उपन्यास का अंग्रेजी में ‘दी नेमेसिस’ शीर्षक से अनुवाद करने वाले रामास्वामी को 2023 के जेसीबी प्राइज फॉर लिटरेचर की 'लांगलिस्ट' में चयनित किया गया है। ए.आई के बढ़ते दखल के बीच साहित्यिक अनुवाद के भविष्य के बारे में सवाल किए जाने पर रामास्वामी ने कहा ‘‘केवल अनुवाद करने के लिए "मशीन" का प्रयोग नहीं, बल्कि अनुवाद करते समय अधिक जानकारीपूर्ण और जागरूक होने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है ।’’.

वरिष्ठ अनुवादक हंसदा सोवेन्द्र शेखर का मानना है कि ए.आई के बावजूद अभी भी वास्तविक मानव अनुवादकों की आवश्यकता होगी। यह पूछे जाने पर कि क्या एआई की मदद से जब साहित्यिक अनुवाद किया जाएगा तो वह मानवीय भावनाओं के विभिन्न आयामों और गहराई को सही संदर्भ में अनूदित कर पाएगा, के जवाब में शेखर कहते हैं, ‘‘ यदि ए.आई मानवीय भावनाओं का सटीक अनुवाद करने में सक्षम है, तो फिर वह ए.आई नहीं रहेगा/कहलाएगा। मुझे यकीन है कि ए.आई गलतियां करेगा और गलत अर्थ बताएगा। (और मुझे पूरी उम्मीद है कि ऐसा होगा।) मुझे लगता है कि हमें अभी भी मानवीय भावनाओं का अनुवाद करने के लिए, मनुष्यों की आवश्यकता होगी।’’.

मशीनी अनुवाद के अनुवादकों पर पड़ने वाले प्रभाव पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हमें अभी भी साहित्यिक अनुवाद और गुणवत्तापूर्ण अनुवाद के लिए, वास्तविक मानव अनुवादकों की आवश्यकता होगी। लेकिन कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए ए.आई अभी भी संतोषजनक ढंग से अनुवाद कर सकता है, और मुझे डर है कि यह मनुष्यों से इस काम को छीन सकता है।’’.

एस्तोनिया सरकार द्वारा ‘एस्तोनियन आर्डर आफ दी व्हाइट स्टार’ पुरस्कार से सम्मानित और रूमी एवं कबीर का एस्तोनियाई भाषा में अनुवाद करने वाली कवयित्री डोरिस करेवा ने भाषा को ईमेल साक्षात्कार में कहा,‘‘ एक बात तो तय है कि एआई का साहित्यिक अनुवाद पर कुछ न कुछ तो असर होगा। निश्चित तौर पर यह प्रभावित करेगा लेकिन यह प्रभाव साहित्य की समृद्धि में योगदान देगा या उस पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा, यह अभी देखना बाकी है।’’.

प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार कहते हैं कि एआई का उपयोग अनुवाद कार्य के लिए किया जाए यह कदापि उचित नहीं है। गूगल की मदद से किया गया अनुवाद भावों का अनुवाद न होकर मात्र शब्दों का अनुवाद ही होता है, इससे अनुवादित सामग्री का मूल तत्त्व विकृत हो जाता है। संभव है कि आने वाले 4-5 वर्षों में तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा यह कार्य ज्यादा परिष्कृत और सुपाठ्य रूप ले ले।’’.

प्रतिष्ठित प्रकाशन कंपनी हार्पर कॉलिन्स में अनुवादक, संपादक, उर्मिला कहती हैं ,‘‘ अनुवाद कला उतनी ही प्राचीन है, जितनी की सभ्यता । वर्तमान में, एआई के दौर में अनुवाद की प्रासंगिकता पर सवाल उठाना उतना ही अनिवार्य या गैर अनिवार्य है, जितना कम्प्यूटर के आने पर मानव श्रम के गायब होने का भय था। ऐसा ही सहयोग संभवत: एआई के आने से अनुवाद या अन्य किसी भी क्षेत्र में प्राप्त होगा।".

भारतीय संस्कृति मंत्रालय से अंग्रेजी साहित्य में फैलोशिप प्राप्तकर्ता और गीत चतुर्वेदी द्वारा लिखित उपन्यास का ‘सिमसिम’ शीर्षक से अंग्रेजी में अनुवाद करने वाली अनीता गोपालन कहती हैं, ‘‘साहित्यिक अनुवाद एक रचनात्मक प्रयास है। इसमें केवल एक भाषा से दूसरी भाषा में विषय वस्तु का अनुवाद करना नहीं है, बल्कि इसमें लक्षित भाषा में अभिव्यक्तियों के सार और सुंदरता को बरकरार भी रखना है। इसमें भाषा की नब्ज को पहचानना और अधिक सूक्ष्म परतों-सांस्कृतिक बारीकियों और अर्थ की छिपी हुई परतों को छूने में सक्षम होना है। मूल भाषा की ऐसी भाषाई सुंदरता को सामने लाने में ए.आई बहुत सक्षम नहीं है।’’ वह कहती हैं कि जरूरी नहीं कि मानव अनुवादक हमेशा सही नब्ज पकड़े, यह निश्चित नहीं है कि वे हमेशा मानवीय भावनाओं को सही संदर्भ में समझेंगे, लेकिन उनकी सफलता दर ए.आई से काफी अधिक है।’’.