गोवा विधानसभा अध्यक्ष ने मणिपुर हिंसा पर चर्चा कराने से इनकार किया, कहा - यह मुद्दा बेहद संवेदनशील
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे से जुड़े सभी पहलुओं पर सुनवाई कर रहे हैं।
पणजी: गोवा विधानसभा अध्यक्ष रमेश तवाडकर ने शुक्रवार को मणिपुर हिंसा पर सदन में चर्चा की मांग वाले एक सदस्य के निजी संकल्प को अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद विपक्ष ने हंगामा किया। यह प्रस्ताव विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान शुक्रवार को आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक क्रूज सिल्वा द्वारा पेश किया गया था। प्रस्ताव में सिल्वा ने कहा कि मणिपुर हिंसा पर सदन में चर्चा होनी चाहिए।
विधानसभा अध्यक्ष तवाडकर ने कहा, ‘‘यह एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है। मणिपुर सरकार पहले से ही इस मामले को देख रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय भी इस मुद्दे को देख रहा है। इसलिए, मैं इस प्रस्ताव को अस्वीकार करता हूं।’’
कांग्रेस, आप, गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) समेत अन्य विपक्षी सदस्यों ने तवाडकर के कदम के खिलाफ सदन में शोर-शराबा किया।
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे से जुड़े सभी पहलुओं पर सुनवाई कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘संसद में इस मुद्दे पर कोई विरोध नहीं है। सभी (मणिपुर की) शांति, सुरक्षा और विकास के लिए केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि गोवा के लोग पहले से ही मणिपुर की एकता, शांति और समृद्धि के पक्ष में हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि, इस मुद्दे पर पहले ही उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हो रही है, इसलिए विपक्ष को इसे (विधानसभा में विरोध) सस्ती लोकप्रियता का हथकंडा नहीं बनाना चाहिए।’’ विधानसभा के दोपहर के भोजन के बाद के सत्र के दौरान विपक्ष ने इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश की, लेकिन अध्यक्ष ने उनसे राज्य की शांति और सद्भाव को खराब न करने का आग्रह करते हुए फिर से अनुमति नहीं दी।
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
राज्य में मेइती समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे अधिकतर पर्वतीय जिलों में रहते हैं।