अपने ही सरकार के खिलाफ अनसन पर बैठे सचिन पायलट, CM गहलोत से लिया पंगा

Rozanaspokesman

राज्य

गहलोत और पायलट में यह खींचतान दिसंबर 2018 में सरकार गठन के दौरान मुख्यमंत्री पद को लेकर शुरू हुई थी।

Sachin Pilot sitting on hunger strike against his own government, messed with CM Gehlot

जयपुर ; राजस्‍थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कांग्रेस पार्टी द्वारा दी गई चेतावनी को दरकिनार करते हुए मंगलवार को यहां पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की मांग को लेकर एक दिवसीय ‘अनशन’ शुरू किया। इसके साथ ही पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ फ‍िर मोर्चा खोल दिया है। दिसंबर 2018 में राज्‍य में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही इन दोनों नेताओं में खींचतान जारी है। कांग्रेस के सत्ता में आने के समय पायलट राजस्‍थान कांग्रेस के अध्‍यक्ष थे।

कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा द्वारा दी गई चेतावनी से व‍िचलि‍त हुए बिना पायलट मंगलवार पूर्वाह्न 11 बजे यहां शहीद स्‍मारक पर धरने पर बैठे। धरना स्‍थल पर बड़ी संख्या में पायलट समर्थक मौजूद हैं, हालांकि पार्टी का कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आया। पायलट ने मौजूदा विधायकों से इस कार्यक्रम में नहीं आने को कहा था।

इस अनशन के लिए शहीद स्मारक के पास एक तंबू लगाया गया। वहां बनाए गए छोटे से मंच पर केवल पायलट बैठे। उनके समर्थक व अन्‍य कार्यकर्ता आसपास नीचे बैठे। मंच के पास महात्‍मा गांधी एवं ज्‍योतिबा फुले की तस्‍वीरें रखी गईं। मंच के पीछे केवल महात्‍मा गांधी की फोटो के साथ ‘वसुंधरा सरकार में हुए भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध अनशन’ लिखा है। लाउडस्‍पीकर पर अलग अलग देशभक्ति गाने बजाए गए।.

शहीद स्मारक पर पहुंचने से पहले पायलट अपने आवास से 22 गोदाम सर्किल पहुंचे और वहां समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। पायलट ने इस दौरान संवाददाताओं से कोई बात नहीं की।

उल्‍लेखनीय है कि पायलट ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली पिछली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के मामलों में राज्‍य की मौजूदा अशोक गहलोत नीत सरकार द्वारा कार्रवाई किए जाने की मांग को लेकर एक दिवसीय अनशन करने की घोषणा की थी। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने पायलट के इस कदम को ‘पार्टी विरोधी’ करार दिया है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा का एक बयान सोमवार देर रात जारी किया गया जिसके अनुसार, ‘‘पायलट का अनशन पार्टी के हितों के खिलाफ है और पार्टी विरोधी गतिविधि है।’’

रंधावा ने कहा, ‘‘अगर अपनी ही पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के साथ उन्हें कोई समस्‍या है तो मीड‍िया और जनता के बजाय पार्टी के मंच पर चर्चा की जा सकती है।’’ इसके साथ ही रंधावा ने कहा क‍ि पायलट ने कभी उनसे ऐसे मुद्दे पर चर्चा नहीं की।

वहीं भाजपा के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने मंगलवार को ट्वीट किया, ‘‘राजस्थान कांग्रेस में घमासान सड़कों पर आया। गहलोत सरकार में महिलाओं पर अत्याचार, दलित शोषण, खान घोटालों और पेपर लीक घोटाले में कांग्रेस जन मौन क्यों हैं? पुजारी और संतों की मौत का जिम्मेदार कौन, तुष्टिकरण के मामलों से बहुसंख्यकों की विरोधी सरकार की दुर्गति निश्चित है।’’

पायलट ने रविवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में अनशन पर बैठने की घोषणा की। उन्होंने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार के कथित भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई नहीं करने के लिए राजस्थान की मौजूदा अशोक गहलोत सरकार पर भी निशाना साधा।.

कांग्रेस में गुटबाजी के बीच पायलट के इस कदम को विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में नेतृत्व के मुद्दे को हल करने के लिए पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

उल्‍लेखनीय है कि गहलोत और पायलट में यह खींचतान दिसंबर 2018 में सरकार गठन के दौरान मुख्यमंत्री पद को लेकर शुरू हुई थी। तब पार्टी आलाकमान ने गहलोत को तीसरी बार मुख्‍यमंत्री पद द‍िया जबक‍ि पायलट को उपमुख्‍यमंत्री बनाया। जुलाई 2020 में पायलट ने कुछ और विधायकों के साथ गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। इसके बाद राज्‍य में लगभग एक महीने तक राजनीतिक संकट रहा जो पार्टी आलाकमान की ओर से पायलट द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर करने के आश्वासन के बाद समाप्त हो गया था।

इसी घटनाक्रम के बीच गहलोत ने पायलट के लिए ‘‘गद्दार’’, ‘‘नकारा’’ और ‘‘निकम्मा’’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया और उन पर भाजपा नेताओं के साथ म‍िलकर राज्‍य की चुनी हुई सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाया। पायलट मांग करते रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कार्रवाई करे।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल 25 सितंबर को मुख्यमंत्री आवास पर कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक बुलाई गई थी। इसे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले राज्य में मुख्यमंत्री को बदलने की कवायद के रूप में देखा गया क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था। हालांकि, सीएलपी की बैठक नहीं हो सकी क्योंकि गहलोत के वफादार विधायकों ने संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर समानांतर बैठक की और सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के किसी भी संभावित कदम के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया।

इन विधायकों का कहना था कि अगर विधायक दल का नया नेता चुनना है तो वह उन 102 विधायकों में से हो जिन्होंने जुलाई 2020 में राजनीतिक संकट के दौरान अशोक गहलोत सरकार का समर्थन किया था। तब पायलट और 18 अन्य विधायकों ने गहलोत के खिलाफ बगावत की थी। इसके बाद कांग्रेस की अनुशासनात्मक समिति ने मंत्री शांति धारीवाल और महेश जोशी तथा पार्टी के नेता धर्मेंद्र राठौड़ को उनकी ‘‘घोर अनुशासनहीनता’’ के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया।

पिछले साल नवंबर में कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के राजस्‍थान में प्रवेश से ठीक पहले गहलोत ने एक टेलीविजन समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में पायलट को फिर से निशाना बनाया और उन्हें ‘‘गद्दार’’ कहा। पायलट ने इसका जवाब देते हुए कहा कि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल उनकी परवरिश को शोभा नहीं देता।