छत्तीसगढ़ शराब घोटाला : न्यायालय ने ED से डर का माहौल पैदा न करने को कहा

Rozanaspokesman

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सरकार ने दावा किया कि अधिकारियों ने कहा है कि वे विभाग में काम नहीं करेंगे।

Chhattisgarh liquor scam: Court asks ED not to create an atmosphere of fear

New Delhi: छत्तीसगढ़ सरकार के प्रवर्तन निदेशालय पर ‘‘बुरा बर्ताव’’ करने और राज्य में कथित तौर पर 2,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले से जुड़े धन शोधन के मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को फंसाने की कोशिश करने का आरोप लगाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को जांच एजेंसी से ‘‘डर का माहौल’’ पैदा न करने को कहा।

राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए अमानुल्ला की पीठ के समक्ष आरोप लगाया कि राज्य के आबकारी विभाग के कई अधिकारियों ने शिकायत की है कि ईडी उन्हें तथा उनके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करने की धमकी दे रही है और ‘‘मुख्यमंत्री को फंसाने की कोशिश कर रही है।’’

सरकार ने दावा किया कि अधिकारियों ने कहा है कि वे विभाग में काम नहीं करेंगे।

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा, ‘‘ईडी बुरा बर्ताव कर रही है। वे आबकारी अधिकारियों को धमकी दे रहे हैं। यह हैरान करने वाली स्थिति है। अब चुनाव आ रहे हैं और इसलिए यह हो रहा है।’’.

ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने आरोपों का विरोध किया और कहा कि जांच एजेंसी राज्य में एक घोटाले की जांच कर रही है। इसपर पीठ ने कहा, ‘‘जब आप इस तरीके से बर्ताव करते हैं, तो एक जायज वजह भी संदिग्ध हो जाती है। डर का माहौल पैदा न करें।’’

पिछले महीने छत्तीसगढ़ सरकार ने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था और आरोप लगाया था कि केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल गैर-भाजपा सरकार को डराने, परेशान करने तथा सामान्य कामकाज को बाधित करने के लिए किया जा रहा है।

इसके साथ ही, छत्तीसगढ़ धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती देने वाला पहला राज्य बन गया था।

भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत अधिनियम को चुनौती देते हुए मूल वाद दायर किया। यह अनुच्छेद किसी राज्य को केंद्र या किसी अन्य राज्य के साथ विवाद की स्थिति में सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख करने का अधिकार देता है।

उच्चतम न्यायालय मंगलवार को छत्तीसगढ़ के दो लोगों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें से एक को ईडी ने इस मामले के संबंध में गिरफ्तार किया है। याचिका में धन शोधन रोधी एजेंसी द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को चुनौती दी गयी है।

राज्य ने इस याचिका में पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध करते हुए एक अर्जी दायर कर दावा किया कि आबकारी विभाग के 52 अधिकारियों ने लिखित में शिकायत देते हुए जांच के दौरान ईडी अधिकारियों द्वारा ‘‘मानसिक तथा शारीरिक रूप से प्रताड़ित’’ किए जाने का आरोप लगाया है।

अपनी अर्जी में छत्तीसगढ़ ने दावा किया, ‘‘कई अधिकारियों ने गंभीर आरोप लगाए हैं कि न केवल उन्हें धमकाया गया, बल्कि उनके परिवार के सदस्यों का शारीरिक उत्पीड़न किया गया और उन्हें कोरे कागज या पहले से टाइप दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने की धमकी दी गई।’’

याचिका में कहा गया है, ‘‘प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी राज्य के अधिकारियों या उनके परिवार के सदस्यों को धमकी दे रहे हैं कि अगर वे मुख्यमंत्री और राज्य प्रशासन के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को फंसाने के लिये उनके मनमुताबिक बयान नहीं देते हैं या हस्ताक्षर नहीं करते हैं तो वे उन्हें गिरफ्तार कर लेंगे और झूठे मामलों में फंसा देंगे।’’

पीठ ने ईडी को राज्य की याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी अर्जी में दावा किया कि लिखित में शिकायत करने वाले अधिकारियों को अब दंडात्मक कार्रवाई करने तथा राज्य पुलिस के समक्ष दिए बयान वापस लेने की धमकी दी जा रही है, ‘‘जो अपने आप में अपराध की जांच में हस्तक्षेप है।’’

सरकार ने कहा कि जिस मुख्य वजह से वह शीर्ष न्यायालय का रुख करने के लिए बाध्य हुई है वह यह है कि ईडी की कार्रवाई ‘‘न केवल दबाव डालने वाली, गैरकानूनी, पक्षपातपूर्ण, मनमानी, राजनीतिक रूप से प्रेरित’’ है, बल्कि पूरी तरह कानून के अधिकार क्षेत्र के बाहर है।

उसने दावा किया, ‘‘प्रतिवादी जांच एजेंसी अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम कर रही है और जांच पूरी तरह पक्षपातपूर्ण, गैर स्वतंत्र है और छत्तीसगढ़ में अस्थिरता लाने के लिए सभी कदम पूर्व नियोजित हैं।’’

गौरतलब है कि धन शोधन का यह मामला दिल्ली की एक अदालत में 2022 में दाखिल आयकर विभाग के एक आरोपपत्र पर आधारित है। ईडी ने अदालत में कहा था कि एक सिंडिकेट द्वारा छत्तीसगढ़ में शराब के व्यापार में बड़ा घोटाला किया गया। एजेंसी ने आरोप लगाया कि इस सिंडिकेट में राज्य सरकार के उच्च-स्तरीय अधिकारी, निजी व्यक्ति और राजनीति से जुड़े लोग शामिल थे, जिन्होंने 2019-22 के बीच दो हजार करोड़ रुपये से अधिक का भ्रष्टाचार किया