कोर्ट ने कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक विधवा महिला के मंदिर में प्रवेश करने से मंदिर के अपवित्र होने जैसी पुरानी मान्यताएं राज्य में...
चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी विधवा को मंदिर में प्रवेश से रोकने जैसी ‘‘हठधर्मिता’’ कानून द्वारा शासित सभ्य समाज में नहीं हो सकती है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि एक महिला की अपनी व्यक्तिगत पहचान होती है।
कोर्ट ने कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक विधवा महिला के मंदिर में प्रवेश करने से मंदिर के अपवित्र होने जैसी पुरानी मान्यताएं राज्य में बरकरार हैं। न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने थंगमणि द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए चार अगस्त के अपने आदेश में यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता ने इरोड जिले के नाम्बियुर तालुका स्थित पेरियाकरुपरायण मंदिर में प्रवेश के लिए उन्हें और उनके बेटे को सुरक्षा प्रदान करने के वास्ते पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया। वह नौ अगस्त से होने वाले दो-दिवसीय मंदिर महोत्सव में हिस्सा लेना चाहती थीं और उन्होंने पिछले महीने इस संबंध में ज्ञापन भी दिया था।
याचिकाकर्ता के पति उक्त मंदिर के पुजारी हुआ करते थे। तमिल ‘आदि’ महीने के दौरान मंदिर समिति ने नौ और 10 अगस्त, 2023 को एक उत्सव आयोजित करने का निर्णय लिया।
याचिकाकर्ता और उनका बेटा महोत्सव में भाग लेना और पूजा करना चाहते थे। आरोप है कि दो व्यक्तियों- अयावु और मुरली ने उन्हें (महिला को) यह कहते हुए धमकी दी थी कि उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह एक विधवा हैं।
इसके बाद महिला ने पुलिस सुरक्षा देने के लिए अधिकारियों को एक ज्ञापन दिया और जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया। अदालत ने कहा कि एक महिला की अपनी व्यक्तिगत पहचान होती है और उसे उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता या छीना नहीं जा सकता है।
न्यायाधीश ने कहा कि अयावु और मुरली को याचिकाकर्ता तथा उनके बेटे को मंदिर महोत्सव में शामिल होने एवं भगवान की पूजा करने से रोकने का कोई अधिकार नहीं है।