पीठ ने कहा, ‘‘हम कानूनी प्रक्रियाओं के विपरीत नहीं जाना चाहते।
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट उत्तराखंड में हिंदू संगठनों की ओर से बुलाई गई ‘महापंचायत’ को रोकने और एक विशेष समुदाय के सदस्यों को कथित रूप से निशाना बनाते हुए नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई करने से बुधवार को इनकार कर दिया। यह महापंचायत गुरुवार को होनी है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाश पीठ ने अधिवक्ता शारुख आलम से कानून में उपलब्ध विकल्पों को चुनने और उच्च न्यायालय अथवा किसी अन्य प्राधिकरण के पास जाने को कहा।
पीठ ने कहा, ‘‘हम कानूनी प्रक्रियाओं के विपरीत नहीं जाना चाहते। उच्च न्यायालय है और जिला प्रशासन है, आप उनसे संपर्क कर सकते हैं। कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और आपको क्या लगता है कि अगर मामला उसके संज्ञान में लाया जाता है तो कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। आपको उच्च न्यायालय में विश्वास रखना चाहिए।’’
इस पर आलम ने कहा कि पोस्टर और पत्रों के जिरए एक विशेष समुदाय के सदस्यों को उत्तरकाशी छोड़ने के लिए कहा गया है और नफरत फैलाने वाले भाषणों के मामले में पुलिस को स्वत: संज्ञान लेते हुए प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए लेकिन उसकी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।
उन्होंने कहा, ‘‘उपलब्ध सामग्री से पता चलता है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता है। 15 जून को एक महापंचायत होने वाली है और उन्होंने जिला प्रशासन को 15 जून तक एक विशेष समुदाय के सदस्यों को हटाने का अल्टीमेटम दिया है।’’
गौरतलब है कि 26 मई को दो लोगों द्वारा एक हिंदू लड़की के कथित अपहरण की कोशिश के बाद उत्तरकाशी जिले के पुरोला और कुछ अन्य शहरों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया है। इसके बाद मुसलमानों के स्वामित्व वाली दुकानों पर अज्ञात लोगों ने पोस्टर चिपकाए थे, जिसमें कहा गया था कि वे पुरोला में हिंदू संगठनों द्वारा बुलाई गई महापंचायत से पहले शहर छोड़ दें या परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।