, दुनियाभर में मंकीपॉक्स वायरस का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है।
MonkeyPox Update: कोरोना की तरह मंकीपॉक्स वायरस की जांच के लिए भारत को स्वदेशी जांच तकनीक विकसित करने में कामयाबी मिली है। पिछले वर्ष भारत में मिले मंकीपॉक्स संक्रमित मरीज़ों के नमूनों से वायरस पृथक करने के बाद पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने जांच तकनीक की खोज शुरू की। करीब सालभर बाद अब इस तकनीक से किट का उत्पादन और उसे बाजार में ले जाने के लिए निजी कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी है।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने बताया कि जिस आरटी पीसीआर तकनीक से कोरोना वायरस की जांच की जा रही है, उसी तकनीक का इस्तेमाल मंकीपॉक्स संक्रमण के लिए किया है। इस तकनीक की खोज के बाद किट बनाने के लिए एक निजी कंपनी के साथ समझौता किया गया, जिसे हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) से अनुमति मिली है। गुजरात के वड़ोदरा स्थित सीमेंस हेल्थिनर्स की फैक्टरी में सालाना करीब 10 लाख जांच किट का उत्पादन करने की क्षमता है।
डब्ल्यूएचओ ने घोषित किया है आपातकाल
दरअसल, दुनियाभर में मंकीपॉक्स वायरस का प्रकोप तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मंकीपॉक्स को लेकर हाल ही में दुनियाभर में इसे स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है। हालांकि, अभी तक भारत में कोई नया मामला सामने नहीं आया है, लेकिन भारत में पहला मंकीपॉक्स संक्रमित मरीज 14 जुलाई 2022 को केरल में मिला, जिसकी उपचार के दौरान मौत हुई। इसके बाद 2023 तक कुल 25 मामले सामने आए, जिनमें 10 केरल और 5 मरीज दिल्ली में मिले।
226 दिन तक रहती है एंटीबॉडी एनआईवी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि एक स्वदेशी तकनीक से मंकीपॉक्स की एंटीबॉडी का पता चला है, जिसके अनुसार मंकीपॉक्स संक्रमित रोगी में बीमारी के खिलाफ एंटीबॉडी 226 दिन या उससे अधिक समय तक प्रभावी रह सकती हैं। यह कोरोना वायरस की तुलना में करीब दो गुना ज्यादा है, क्योंकि कोरोना वायरस की एंटीबॉडी तीन से छह माह तक ही देखने को मिलती है।
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