साथ ही आरोपी के साथ विवाह करने के लिए उससे उसका धर्म बदलने के लिए भी धमकाया गया।
New Delhi: अनुचित वीडियो या तस्वीरों के आधार पर ब्लैकमेल किए जाने वाले लड़कियों और लड़कों के यौन उत्पीड़न के मामलों पर गौर करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से कहा है कि वह युवाओं को सोशल मीडिया पर दूसरों की "अंतरंग" सामग्री बिना उनकी सहमति के पोस्ट करने के खिलाफ शिक्षित करे। न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने एक नाबालिग लड़की की आपत्तिजनक तस्वीरों को सार्वजनिक करने का भय दिखा कर उसका उत्पीड़न करने के आरोपी एक युवक को जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि धमकी,दबाव डालने ,ब्लैकमेल तथा हिंसा के जरिए बनाए गए यौन संबंध निर्दोष,सहमति वाले किशोर वय के प्रेम संबंध से अलग हैं।
अदालत ने कहा कि इस मामले में 17 वर्षीय पीड़िता को कुछ आपत्तिजनक तस्वीरों तथा वीडियो के जरिए समाज में शर्मिंदा करने का भय दिखाया गया। साथ ही आरोपी के साथ विवाह करने के लिए उससे उसका धर्म बदलने के लिए भी धमकाया गया। पीड़िता की तस्वीरें और वीडियो 19 वर्षीय लड़के ने उसकी सहमति के बिना बनाए थे।
अदालत ने 11मई के अपने आदेश में कहा ,‘‘आरोपी कामुक तस्वीरों और वीडियो को यौन संबंध बनाने के वास्ते धमकाने, सामाजिक तौर पर शर्मिंदा करने, बदनाम करने तथा ब्लैकमेल करने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था।’’
अदालत ने कहा, ‘‘ यह अदालत दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से अनुरोध करती है कि वह एक कार्यक्रम तैयार करे, जिसमें वे छात्रों,संभावित संवेदनशील पीड़ितों को शिक्षित करें। साथ ही वह ऐसे किशोरों को भी शिक्षित करें, जो इस प्रकार के अपराधों में संलिप्त हो सकते हैं और यह नहीं जानते कि ऐसी अंतरंग सामग्री को सोशल मीडिया पर दूसरे की सहमति के बिना सार्वजनिक करना कानून के विरुद्ध है।’’
आरोपी साकिब अहमद ने दावा किया था कि उसे फंसाया गया है और वह तथा पीड़िता एक दूसरे को तीन वर्ष से जानते थे और उनके बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे।
इस पर अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोपी ने न सिर्फ अपने संबंधों के वीडियो बनाए और उनकी तस्वीरें लीं, बल्कि पीड़िता का यौन उत्पीड़न जारी रखने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करने की भी लगातार धमकी दी।