इन याचिकाओं में से एक वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले के संबंध में दायर की गई है।
New Delhi: भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जहां शादी के बाद गैर-सहमति वाले सेक्स को बलात्कार नहीं माना जाता है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) 2019-21 के आंकड़ों से पता चलता है कि 15-49 वर्ष की आयु की पांच विवाहित भारतीय महिलाओं में से लगभग एक में अभी भी अपने पतियों के साथ यौन संबंधों (sexual relations) पर बातचीत करने की क्षमता नहीं है। 25 प्रतिशत से अधिक पुरुषों का मानना है कि जब पत्नी अपने पति के साथ सेक्सुअल संबंध बनाने से इनकार करती है, तो उन्हें उस पर गुस्सा करने और उसके खिलाफ बल प्रयोग करने , उसकी आर्थिक सहायता से इनकार करने (13 प्रतिशत), और जबरन यौन संबंध बनाने (12.2 प्रतिशत) या दूसरे के साथ सेक्सुअल संबंध बनाने (12.6 प्रतिशत) का अधिकार है.
इन्हीं बातों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के लिए अनुरोध किया गया। और अब इन्हीं याचिकाओे पर उच्चतम न्यायालय ने विस्तृत सुनवाई के लिए बुधवार को नौ मई की तारीख तय की।
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया। उन्होंने पीठ से कहा कि मामले में दलीलों और विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण के लिए आदेश तैयार है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र का जवाब तैयार है और इसकी जांच की जानी है।
पीठ ने कहा, “मामले को नौ मई 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें।” शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी को वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण से संबंधित याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। इन याचिकाओं में से एक वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले के संबंध में दायर की गई है। यह अपील, दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल करने वालों में शामिल खुशबू सैफी की है। दिल्ली उच्च .न्यायालय ने पिछले साल 11 मई को इस मामले में खंडित फैसला सुनाया था।