पीठ ने कहा कि तीनों फैसले अपने निष्कर्षों पर पहुंचने के लिए अमेरिकी अदालत के फैसलों पर निर्भर थे।
New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) का मुख्य उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ होने वाली गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराना है। न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीयकरण पर गठित की गई समिति की सिफारिशों के आधार पर यह बात कही।
इस समिति का गठन राष्ट्रीय एकता परिषद अधिनियम के तहत किया गया था, जिसकी सिफारिश पर संविधान (सोलहवां संशोधन) अधिनियम, 1963 अधिनियमित किया गया और गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लागू हुआ।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय एकता परिषद ने अन्य बातों के साथ-साथ भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों में उचित प्रतिबंध लगाने के पहलू पर गौर करने के लिए राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीयकरण पर एक समिति नियुक्त की और उसके बाद यूएपीए अधिनियमित किया गया। इसलिए, यूएपीए को भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ होने वाली गतिविधियों से निपटने के लिए शक्तियां उपलब्ध कराने के वास्ते अधिनियमित किया गया है।’’
इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिकी अदालतों के फैसलों का पालन करने से पहले भारतीय अदालतों को संबंधित देशों में लागू कानूनों की प्रकृति में अंतर पर विचार करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि 2011 में सुनाए गए तीन फैसले, जिनमें कहा गया था कि एक प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता लेने से किसी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता या लोगों को हिंसा के लिए नहीं उकसाता अथवा कोई ऐसा कृत्य नहीं करता, जिसका इरादा हिंसा का सहारा लेकर अव्यवस्था या सार्वजनिक शांति भंग करना है। यह "एक अच्छा कानून नहीं है।".
पीठ ने कहा कि तीनों फैसले अपने निष्कर्षों पर पहुंचने के लिए अमेरिकी अदालत के फैसलों पर निर्भर थे। उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘इस अदालत को अमेरिकी कानूनों और भारतीय कानूनों में अंतर, विशेष रूप से भारतीय संविधान के प्रावधानों पर विचार करना चाहिए था।’’