उन्होंने कहा कि नई दूसरी सूची में कायस्थ को क्रमांक -21 पर रखा गया है और वही बंगाली कायस्थ की क्रमांक - 105 बना दिया गया है जो गलत है।
New Delhi: बिहार में 15 अप्रैल से शुरु होने वाली जातीय जनगणना में सभी कायस्थ जाति कॉलम 21 में ही “कायस्थ” दर्ज कराएं। उक्त बातें जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस) के प्रबंध न्यासी रागनी रंजन ने जीकेसी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष (मीडिया) जितेन्द्र कुमार सिन्हा से हुई वार्ता के क्रम में कही।
उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना से संबंधित कई मीडिया में जाति क्रमांक की सूची प्रकाशित हुआ था जिसमें कायस्थ की क्रमांक - 22 और दर्जी क्रमांक - 206 में (हिन्दू) उपनाम श्रीवास्तव, लाला, लाल और दर्जी अंकित किया था। इस तरह कायस्थ को बांट कर जनसंख्या कम करने की राजनीति दर्शायी गई थी। बाद में इस सूची को संशोधित किया गया और दूसरी सूची में भी कायस्थ को बांटने का प्रयास है।
उन्होंने कहा कि नई दूसरी सूची में कायस्थ को क्रमांक -21 पर रखा गया है और वही बंगाली कायस्थ की क्रमांक - 105 बना दिया गया है जो गलत है। जबकि बंगाली या अन्य उपनाम के कायस्थ का एक ही क्रमांक होना चाहिए था। दो क्रमांक की आवश्यकता ही नहीं थी।
रागनी रंजन ने कहा कि भगवान चित्रगुप्त महाराज की दो पत्नी से क्रमशः 8 और 4 कुल 12 पुत्र है, जो भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय) नाम से नामित है।
उन्होंने कहा कि परिवर्तित समय में कायस्थों सहित अन्य जातियों के लोग भिन्न भिन्न उपनाम से जानें जाते है। उसी तरह कायस्थ जाति के लोग भी 12कायस्थ उपनाम के अतरिक्त उपनाम से जाने जाते है जिसमें मल्लिक, दास, बसु, बोस आदि प्रचलित हैं।
रागनी रंजन ने सभी उपनाम वाले कायस्थ जातियों से अनुरोध की है कि 15 अप्रैल से शुरु होने वाली जातीय जनगणना में कायस्थ क्रमांक - 21 में ही केवल जाति दर्ज कराएं। बंगाली कायस्थ भी क्रमांक - 21 में ही जाति दर्ज कराएं न की क्रमांक - 205 में। उन्होंने कहा कि सभी लोग अवगत है कि बिहार में राजनिति लाभ कायस्थो को नहीं मिल रहा है। इसलिए जातीय जनगणना में एकजुट होकर क्रमांक - 21 में ही अपनी गिनती दर्ज कराएं।