डॉक्टर ने बताया की 10 से 12 साल में कभी-कभी इन्फेक्शन हो जाता है जिस कारण यह बीमारी और बढ़ जाती है...
पटना : एक 16 वर्षीय मरीज रजनी (काल्पनिक नाम) हृदय संबंधित समस्या के कारण थोड़े ही दूर चलने पर हांफने लगती थी, बीमारी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी और वह शारीरिक रूप से भी कमजोर होती जा रही थी। वह अन्य बच्चों को जब खेलते हुए देखती तब अपने पापा से पूछा करती कि पापा कब मैं इनके साथ खेल पाऊंगी और उसके पिता के पास भी इसका जवाब नहीं होता था। मरीज के पिता ने उसकी इस समस्या को दूर करने के लिए गया के ही अस्पताल में एक दो बार नहीं बल्कि 3 बार दिखाया, परंतु उसके बाद भी उसकी स्थिति नहीं सुधरी। इसके बाद पारिवारिक मित्र की सलाह पर उन्होंने अपनी बच्ची को एम्स गया में डॉ अभय नारायण राय से सलाह ली जिन्होंने उनको नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम में दिखाने को बोला, जहां पर कुछ जांच किए गए और विशेषज्ञों ने दूरबीन विधि द्वारा सर्जरी की गयी जिसे की-होल सर्जरी भी बोला जाता है। उसके परिवार के अनुमति के बाद की-होल सर्जरी की गई, मरीज की उम्र कम थी इसलिए भी की-होल सर्जरी बहुत आवश्यक थी इसमें पसलियों के बीच हृदय तक पहुंचने के लिए छाती में छोटा चीरा लगाया जाता है। डॉक्टरों ने उसके कंधे के नीचे से छाती के तरफ की होल सर्जरी की, जिससे शरीर पर किसी प्रकार का निशान ना दिखे। नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम के विशेषज्ञों ने अत्यंत जटिल सर्जरी के माध्यम से मरीज को न सिर्फ नया जीवन दिया, बल्कि अब वह पहले से स्वस्थ है।
मरीज की सर्जरी करने वाले डॉ रचित सक्सेना, सीनियर कंसल्टेंट, सीटीवीएस, नारायणा सुपरस्पेशिलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम बताते हैं कि समय पर इलाज ना मिलने के कारण उसकी यह बीमारी बढ़ती ही जा रही थी। फिर हमने जांच की और यह पाया कि उसके हार्ट में वाल्व की सिकुड़न होने की वजह से जो हार्ट में ब्लड निकलने का रास्ता सकरा था जिसके वजह से उसके शरीर में ब्लड नहीं पहुंचता था और मजीज को चलने फिरने में सांस फूलती थी। उसका शरीर भी कमजोर था और रात में सोने में भी सांस फूलने लगी थी। उन्होंने बताया कि हमने की-होल सर्जरी के माध्यम से उसके कंधे के नीचे की तरफ छोटा से होल किया और सर्जरी की, इस सर्जरी में शरीर पर निशान नहीं पड़ते और मरीज की उम्र भी अभी कम थी इसलिए बहुत संभल कर यह सर्जरी की गई जिसमें इस खराब वाल्ब की जगह एक आर्टिफिशियल वाल्ब लगा दिया गया। यह एक अच्छे क्वालिटी का वाल्ब है जो पूरी जिंदगी चलेगा। इस वाल्ब से ब्लड के रुकावट की समस्या नहीं होगी।
डॉक्टर ने बताया की 10 से 12 साल में कभी-कभी इन्फेक्शन हो जाता है जिस कारण यह बीमारी और बढ़ जाती है परंतु यदि समय पर इलाज करा दिया जाए तब यह बीमारी अधिक नहीं बढ़ती और मरीज को ठीक किया जा सकता है। नारायणा सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल, गुरुग्राम की तरफ से गया एम्स में ओपीडी का आयोजन किया जा रहा है जिसमें आप हर माह के दूसरे शुक्रवार को डॉ रचित सक्सेना से परामर्श कर सकते हैं।