भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पिता व पुत्र दोनों ही इस पद पर आसीन हुए हैं।
नई दिल्ली ; देश के प्रधान न्यायाधीश का पदभार संभालने वाले न्यायविद् की शख्सियत के बारे में जानकारी देते हुए अमूमन उनके द्वारा सुनाए गए फैसलों और कानूनी बारीकियों पर उनकी पकड़ और समझ की बात की जाती है, हाल ही में देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ लेने वाले धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ इन तमाम खूबियों के अलावा एक और लिहाज से खास हैं। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पिता व पुत्र दोनों ही इस पद पर आसीन हुए हैं।
कितना गौरवपूर्ण संयोग है कि 22 फरवरी 1978 को जब वाई.वी. चंद्रचूड़ ने देश के 16वें प्रधान न्यायाधीश का पदभार संभाला होगा तो उनके परिवार की बात करते हुए उनके पुत्र के रूप में धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के नाम का जिक्र हुआ होगा और नौ नवंबर 2022 को जब धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश का पदभार संभाला तो उनके बारे में जानकारी देते हुए इस बात का प्रमुखता के साथ उल्लेख किया गया कि वह देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ के पुत्र हैं, जो सबसे लंबे समय तक इस प्रतिष्ठित पद पर रहे। पिता और पुत्र के साथ साथ पूरे परिवार के लिए यह खुशी और गर्व का मौका है।
धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को मुंबई में हुआ। पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ जहां कानून के माहिर थे वहीं मां प्रभा को शास्त्रीय संगीत में महारत हासिल थी। मुंबई के कैथड्रल और जॉन कैनन स्कूल से शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने सेंट कोलंबस स्कूल से स्कूली शिक्षा ग्रहण की और देश के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में शुमार सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के ही कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी किया और उसके बाद अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की।
‘असहमति को लोकतंत्र के सेफ्टी वाल्व’ के रूप में देखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कई संविधान पीठ और ऐतिहासिक फैसले देने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठों का हिस्सा रहे हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने व्यभिचार और निजता के अधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने पिता वाई. वी. चंद्रचूड़ के फैसले को पलटने में कोई संकोच नहीं किया।
अयोध्या भूमि विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर फैसला करने वाली पीठ का वह हिस्सा रहे।
काम के प्रति दीवानगी के लिए पहचाने जाने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 30 सितंबर, 2022 को एक पीठ की अध्यक्षता की, जो दशहरे की छुट्टियों की शुरुआत से पहले 75 मामलों की सुनवाई करने के लिए शीर्ष अदालत के नियमित कामकाजी समय से लगभग पांच घंटे अधिक (रात 9:10 बजे) तक बैठी थी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 तक बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे। उसके बाद उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को जून 1998 में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया और वह उसी वर्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए।
देश के प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किए जाने पर सोशल मीडिया पर न्यायमूर्ति डा. धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें वह बेहद विनम्र अंदाज में हाथ जोड़े खड़े दिखाई दे रहे हैं। उनके चेहरे की सौम्यता और व्यक्तित्व की सरलता को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कई महत्वपूर्ण मामलों में उनके सुनाए कठोर फैसले देश के नीति निर्माताओं की कलम का रूख मोड़ चुके हैं।.
जिसमें 24 अगस्त 2017 को निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताने वाला उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक फ़ैसला शामिल है। हालांकि यह फैसला नौ न्यायाधीशें वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से सुनाया था, लेकिन फैसले को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा पीठ में शामिल न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के नाम की हुई क्योंकि यह फैसला सुनाकर उन्होंने अपने पिता न्यामूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ द्वारा इस संबंध में सुनाए फैसले को उलट दिया और नये दौर में संविधान की एक नयी व्याख्या दी।