न्यायालय ने प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल के खिलाफ आपराधिक मामला किया रद्द, जानिए मामला

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न्यायालय ने प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल के खिलाफ आपराधिक मामला किया रद्द, जानिए मामला
Published : Apr 28, 2023, 1:18 pm IST
Updated : Apr 28, 2023, 1:18 pm IST
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Court quashes criminal case against Parkash Singh Badal, Sukhbir Badal
Court quashes criminal case against Parkash Singh Badal, Sukhbir Badal

प्रकाश सिंह बादल का दो दिन पहले बुधवार को मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया था।

 New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने जालसाजी के एक मामले में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के दिवंगत नेता प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुक्रवार को रद्द करते हुए कहा कि निचली अदालत द्वारा जारी समन ‘‘कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ नहीं’’ है।

प्रकाश सिंह बादल का दो दिन पहले बुधवार को मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया था। वह 95 साल के थे।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने पंजाब में होशियारपुर की निचली अदालत द्वारा जारी और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखे गए समन खारिज कर दिए। इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने 11 अप्रैल को प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल और वरिष्ठ अकाली नेता दलजीत सिंह चीमा की याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायमूर्ति शाह ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं के खिलाफ निचली अदालत द्वारा पारित समन आदेश और कुछ नहीं, बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।’’

प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल और चीमा ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के अगस्त, 2021 के एक आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय ने धोखाधड़ी, फर्जीवाड़े और तथ्यों को छुपाने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ता बलवंत सिंह खेड़ा द्वारा दायर शिकायत को लेकर अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, होशियारपुर द्वारा उनके खिलाफ जारी समन को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

खेड़ा ने 2009 में एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के दो संविधान हैं और उसने गुरुद्वारा चुनाव आयोग को गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए एक पार्टी के रूप में पंजीकरण की खातिर एक संविधान प्रस्तुत किया था, जबकि एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए उसने निर्वाचन आयोग को अलग संविधान सौंपा। शिकायत में दलील दी गई कि यह धोखाधड़ी है।

शीर्ष अदालत ने 11 अप्रैल को कहा था कि धार्मिक होने का मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता।.

Location: India, Delhi, New Delhi

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