Holi 2023 : ब्रज में होली की धूम , यहां की होली कई मायनों में होती है अलग

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Holi 2023 : ब्रज में होली की धूम , यहां की होली कई मायनों में होती है अलग
Published : Mar 7, 2023, 12:58 pm IST
Updated : Mar 7, 2023, 12:58 pm IST
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Holi 2023: Holi celebrated in Braj, Holi here is different in many ways
Holi 2023: Holi celebrated in Braj, Holi here is different in many ways

हां होली अन्य शहरों की तरह एक-दो दिन नहीं, बल्कि डेढ़-दो माह तक मनाई जाती है।

मथुरा ;  रंग और उमंग से भरी जिस होली का इंतजार लोगों को पूरे साल बना रहता है, उसका एक अलग ही रंग हर साल ब्रज मंडल में देखने को मिलता है . ब्रज की होली कई मायनों में अलग है। यहां होली अन्य शहरों की तरह एक-दो दिन नहीं, बल्कि डेढ़-दो माह तक मनाई जाती है। दरअसल, ब्रज में होली से जुड़ी परंपराओं का निर्वहन वसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है, जब मंदिरों व चौराहों पर होली जलाए जाने वाले स्थानों पर होली का डांढ़ा (लकड़ी का टुकड़ा, जिसके चारों ओर जलावन लकड़ी, कंडे, उपले आदि लगाए जाते हैं) गाड़ा जाता है।

अहिवासी ब्राह्मण समाज के प्रमुख डॉ. घनश्याम पांडेय ने बताया कि उसी दिन से मंदिरों में ठाकुर जी को प्रसाद के रूप में अबीर, गुलाल, इत्र आदि चढ़ाना और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में यही सामग्री बांटना शुरू हो जाता है। इसके साथ ही मंदिरों में रोज सुबह-शाम होली के गीतों का गायन भी आरंभ हो जाता है। यह क्रम रंगभरी एकादशी तक जारी रहता है, जब गीले रंगों की बौछार शुरू होने लगती है।

मथुरा में बरसाना और नंदगांव की लठमार होली, वृंदावन के मंदिरों की रंग-गुलाल वाली होली, मुखराई के चरकुला नृत्य और गोकुल की छड़ीमार होली के बीच होली पूजन के दो दिन बाद चैत्र मास की द्वितीया (दौज) के दिन बलदेव (दाऊजी) के मंदिर प्रांगण में भगवान बलदाऊ एवं रेवती मैया के श्रीविग्रह के समक्ष बलदेव का प्रसिद्ध हुरंगा खेला जाता है।

इसमें कृष्ण और बलदाऊ के स्वरूप में मौजूद गोप ग्वाल (बलदेव कस्बे के अहिवासी ब्राह्मण समाज के पंडे) राधारानी की सखियां बनकर आईं भाभियों के साथ होली खेलते हैं। यह सिलसिला बलदाऊ से होली खेलने की अनुमति लेने के साथ शुरू होता है।

देवर के रूप में आए पुरुषों का दल एक तरफ, तो भाभी के स्वरूप में मौजूद समाज की महिलाओं का दल दूसरी ओर होता है। दोनों दलों के बीच पहले होली की तान और गीतों के माध्यम से एक-दूसरे पर छींटाकशी होती है। इसके बाद, पुरुषों का दल महिलाओं पर रंग बरसाने लगता है।

जवाब में महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़कर उनका पोतना (कोड़े जैसा गीला कपड़ा) बनाती हैं और उनके नंगे बदन पर बरसाने लगती हैं। पोतना की मार शायद बरसाना की लाठियों से भी ज्यादा तकलीफ देने वाली होती है। लेकिन, होली के रंगे में डूबे हुरियार टेसू के फूलों से बने फिटकरी मिले प्राकृतिक रंगों से उस मार को भी झेल जाते हैं।

इन दिनों मंदिर में नौ मार्च को आयोजित होने वाले इसी हुरंगा की तैयारियां जोरों पर हैं। जिलाधिकारी पुलकित खरे और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेष कुमार पांडेय ने मंदिर का दौरा कर तैयारियों का जायजा लिया और जहां भी आवश्यक समझा, मंदिर प्रशासक आरके पांडेय को सुधार के निर्देश दिए।

मंदिर प्रशासक ने बताया कि हुरंगा के लिए ढाई कुंतल केसरिया रंग मिलाकर टेसू के 10 कुंतल फूलों से रंग तैयार किया गया है। इसके अलावा, 10-10 कुंतल अबीर-गुलाल और फूलों का प्रयोग किया जाएगा। उन्होंने कहा कि टेसू का रंग पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार किया जाता है। इसमें केसर, चूना, फिटकरी मिलाकर शुद्ध रंग बनाया जाता है।

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