आने वाले दशकों और सदियों में पृथ्वी पर संभावित जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए यह आंकड़े महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
कोलकाता: वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि दो सितंबर को इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए जाने वाले भारत के पहले सौर मिशन आदित्य-एल1 के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद सूर्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में नई जानकारी मिल सकेगी। आने वाले दशकों और सदियों में पृथ्वी पर संभावित जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए यह आंकड़े महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
सौर भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर दीपांकर बनर्जी ने कहा कि आदित्य एल-1 पहले लैग्रेंजियन बिंदु तक जाएगा जो पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है और फिर वह उस डेटा को प्रसारित करेगा जिसका अधिकांश भाग पहली बार अंतरिक्ष में किसी मंच से वैज्ञानिक समुदाय के पास आएगा। इस अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज बिंदु) पर सौर वायु के यथास्थिति अवलोकन के लिए तैयार किया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है।
लैग्रेंज बिंदु ऐसे संतुलन बिंदु को कहा जाता है जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वीय बल बराबर होते हैं। आदित्य एल1 को सूर्य-पृथ्वी की व्यवस्था के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। यहां से सूर्य को बिना किसी व्यवधान या ग्रहण के लगातार देखने का लाभ मिलेगा।
बनर्जी, उस टीम का हिस्सा हैं जिसने 10 साल से अधिक समय पहले मिशन की योजना पर काम किया था। बनर्जी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘पृथ्वी पर हमारा अस्तित्व या जीवन मूलतः सूर्य की उपस्थिति के कारण है जो हमारा निकटतम तारा है। सारी ऊर्जा सूर्य से आती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या यह उतनी ही ऊर्जा उत्सर्जित करेगा (जैसा कि यह अभी करता है) या इसमें परिवर्तन होने वाला है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि कल सूर्य उतनी ही मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करेगा तो इसका हमारी जलवायु पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा।’’
नैनीताल में आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के निदेशक बनर्जी ने कहा कि यदि लैग्रेंजियन बिंदु से सूर्य की लंबी अवधि तक निगरानी की जा सकती है, तो यह सूर्य के इतिहास का मॉडल तैयार करने की उम्मीद जगाएगा।
वैज्ञानिक ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि हर 11 साल में सूर्य की चुंबकीय गतिविधि में बदलाव होता है, जिसे सौर चक्र के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि सौर वायुमंडल में चुंबकीय क्षेत्र में भी कभी-कभी व्यापक परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा का भारी विस्फोट होता है, जिसे सौर तूफान कहा जाता है।
दीपांकर बनर्जी ने कहा कि बाहरी सौर वातावरण (कोरोना) मजबूत चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा संरचित है, जो गर्म प्लाज्मा को सीमित करता है। निश्चित समय पर यह अंतरग्रहीय माध्यम में गैस और चुंबकीय क्षेत्र के बुलबुले छोड़ता है, जिसे ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ कहते हैं।
वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘जब वे अंतरग्रहीय माध्यम में यात्रा करते हैं, तो वे सभी दिशाओं में जा सकते हैं। कोरोनल मास इजेक्शन के प्रभाव से उपग्रह सीधे प्रभावित होते हैं। सौर आंधी के कारण चंद्रमा समेत अन्य ग्रह प्रभावित होते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अंतरिक्ष में हमारी संपत्तियों की सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष मौसम के पूर्वानुमान की आवश्यकता है। आदित्य-एल1 के डेटा की मदद से मौसम के पूर्वानुमान में सुधार किया जा सकता है।’’
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का अंतरिक्ष यान पृथ्वी की जलवायु के छिपे इतिहास का पता लगाAditya-L1ने में भी मदद कर सकता है क्योंकि सौर गतिविधियों का ग्रह के वायुमंडल पर प्रभाव पड़ता है। बनर्जी ने कहा, ‘‘पृथ्वी पर कई हिमयुग रहे हैं। लोग अभी भी पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं कि ये हिमयुग कैसे बने और क्या सूर्य इनके लिए जिम्मेदार था।’’