Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने इंश्योरेंस कपंनी को मृत व्यक्ति के परिवार को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं.
मुंबई: टायर फटने को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बताकर मुआवजा देने से इनकार करने वाली बीमा कंपनी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा झटका दिया है. बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने कार दुर्घटना (Car Accident) में मारे गए व्यक्ति के परिवार को मुआवजे के खिलाफ एक बीमा कंपनी की याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि टायर फटना कोई प्राकृतिक घटना नहीं बल्कि मानवीय लापरवाही है, इसलिए कंपनी को मुआवजा देना होगा.
न्यायमूर्ति एसजी डिगे की सिंगल बेंच ने कहा- 'एक्ट ऑफ गॉड' एक गंभीर और आकस्मिक प्राकृतिक घटना है, जिसके लिए कोई भी इंसान जिम्मेदार नहीं है। टायर फटने के लिए इंसान जिम्मेदार है, इसलिए कंपनी इसे 'एक्ट ऑफ गॉड' बताकर मुआवजे से इनकार नहीं कर सकती।
बता दें कि घटना अक्टूबर 2010 की है। मकरंद पटवर्धन अपने दो साथियों के साथ कार से पुणे से मुंबई जा रहा थे। इसी दौरान कार का पिछला टायर फट गया और कतार गहरी खाई में जा गिरी। मकरंद की मौके पर ही मौत हो गई। मकरंद के पास न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी की बीमा पॉलिसी थी। उसके परिजनों ने कंपनी में मुआवजे के लिए आवेदन दिया है।
बीमा कंपनी ने कहा कि टायर फटना 'एक्ट ऑफ गॉड' है और मुआवजा देने से इनकार कर दिया। इसके बाद मकरंद के परिजनों ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण का दरवाजा खटखटाया. ट्रिब्यूनल ने कहा कि मकरंद अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था और कंपनी को मकरंद के परिवार को 1.25 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ कंपनी ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां जस्टिस एसजी डिगे ने कंपनी की अपील खारिज कर दी।
कोर्ट ने टायर फटने के कई कारण भी बताए। कोर्ट ने कहा कि टायर फटने की घटनाएं तेज गति, टायर में हवा के नीचे या ऊपर, उच्च तापमान या पुराने टायर के कारण हो सकती हैं, इसलिए यह मानवीय लापरवाही है। वाहन चलाने से पहले चालक को टायरों की स्थिति की जांच करनी चाहिए।
हाई कोर्ट ने कहा कि केवल टायर फटने को ईश्वरीय कृत्य कहना बीमा कंपनी को मुआवजा देने से बरी करने का आधार नहीं हो सकता.