पिछली तारीख पर सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका अपने पास स्थानांतरित कर ली थी।
Supreme Court closes habeas corpus petition against Sadhguru Isha Yoga Center News in Hindi: सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार (18 अक्टूबर) को एक पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी दो बेटियों को कोयंबटूर स्थित सद्गुरु के ईशा योग केंद्र में अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया है। याचिका के पीछे दो महिलाओं का स्पष्ट बयान था, जिनकी वर्तमान आयु 42 और 39 वर्ष है। उन्होंने कहा था कि वे अपनी स्वतंत्र इच्छा से आश्रम में रह रही हैं।
मामले को बंद करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में ईशा योग केंद्र के खिलाफ अन्य आरोपों पर पुलिस जांच के निर्देश दिए जाने पर आपत्ति जताई। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आदेश में कहा , "चूंकि वे दोनों वयस्क हैं और बंदी प्रत्यक्षीकरण का उद्देश्य पूरा हो गया है, इसलिए हाई कोर्ट से आगे कोई निर्देश देने की आवश्यकता नहीं है।"
पिछली तारीख पर सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका अपने पास स्थानांतरित कर ली थी।
पीठ ने कहा, "बंदी प्रत्यक्षीकरण से निपटने के लिए अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय का अधिकार क्षेत्र अच्छी तरह से परिभाषित है और इस न्यायालय के लिए इसका दायरा बढ़ाना अनावश्यक होगा।"
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा, "ये कार्यवाहियां लोगों और संस्थाओं को बदनाम करने के लिए नहीं होनी चाहिए।"
बता दे कि पीठ सद्गुरु की संस्था ईशा फाउंडेशन की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पुलिस को 5000 निवासियों वाले आश्रम के अंदर जांच करने का निर्देश दिया गया था। उच्च न्यायालय ने यह आदेश एक पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पारित किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा योग केंद्र में अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया है।
ईशा फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि तमिलनाडु पुलिस द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार भी दोनों महिला साध्वियाँ स्वेच्छा से वहाँ रह रही हैं। दोनों महिलाओं ने न्यायालय को यह भी बताया है कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं। इस मामले को देखते हुए रोहतगी ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बंद करने के बजाय पुलिस को निर्देश देने वाले उच्च न्यायालय पर आपत्ति जताई।
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