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न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने कहा,“जीवन साथी चुनना किसी भी तरह से आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है।
New Delhi: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि जीवन साथी चुनना आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है और शादी का अधिकार मानव स्वतंत्रता का मामला है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार न सिर्फ मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में रेखांकित किया गया है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का एक अभिन्न पहलू भी है।
न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी ने कहा,“जीवन साथी चुनना किसी भी तरह से आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है। जब भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म का स्वतंत्र रूप से आचरण करने, मानने और उसका प्रसार करने का अधिकार देता है, तो यह प्रत्येक व्यक्ति को विवाह के मामलों में इन पहलुओं के लिए स्वायत्ता की भी गारंटी देता है।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि जब दोनों वयस्कों की सहमति हो तो राज्य, समाज या यहां तक कि संबंधित पक्षों के माता-पिता भी उनके जीवनसाथी चुनने के फैसले पर अपनी पसंद नहीं थोप सकते हैं, या ऐसे अधिकारों को कम या सीमित नहीं कर सकते हैं।
उच्च न्यायालय का आदेश एक अंतरधार्मिक जोड़े की याचिका पर आया है। जोड़े ने अपने परिवारों की मर्जी के विरुद्ध शादी की थी। उन्होंने अधिकारियों को उन्हें सुरक्षा मुहैया करने का निर्देश देने की मांग की थी क्योंकि उन्हें उनके परिवारों से खतरा है।
अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को संबंधित पुलिस अधिकारियों का संपर्क नंबर प्रदान किया जाए और वे जरूरत पड़ने पर उनसे संपर्क कर सकते हैं।
अदालत ने कहा कि महिला के माता-पिता को याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता को खतरे में डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिन्हें अपने व्यक्तिगत निर्णयों और पसंद के लिए किसी सामाजिक स्वीकृति की जरूरत नहीं है।