उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को सीबीआई की ओर से नहीं, बल्कि निचली अदालत की तरफ से गिरफ्तारी का डर होता है।
New Delhi: उच्चतम न्यायालय ने कुछ अदालतों में समन की तामील पर आरोपी के पेश होते ही उसे हिरासत में भेजने के ‘चलन’ का मुद्दा उठाया और कहा कि किसी उचित मामले में इस तरीके के औचित्य का परीक्षण होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों को चुनौती देने वाले चार आरोपियों की अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। उच्च न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की जांच वाले एक मामले में गिरफ्तारी-पूर्व जमानत की उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को सीबीआई की ओर से नहीं, बल्कि निचली अदालत की तरफ से गिरफ्तारी का डर होता है। उसने आदेश दिया कि अपीलकर्ताओं को उनकी गिरफ्तारी की स्थिति में नियम एवं शर्तों के आधार पर जमानत पर छोड़ा जाए। न्यायालय ने कहा कि ये नियम, शर्त विशेष अदालत लागू कर सकती है, जिसमें पासपोर्ट जमा करने की शर्त भी शामिल है।
न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने 20 मार्च को अपने फैसले में कहा, ‘‘यही वजह है कि देश के कुछ हिस्सों में ऐसा लगता है कि अदालतें इस तरह की प्रवृत्ति को अपनाती हैं कि समन आदेश पर आरोपी के पेश होते ही उसे रिमांड में भेज दिया जाता है। इस तरह के चलन के औचित्य का परीक्षण किसी उचित मामले में किया जाना चाहिए।’’
मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि जून 2019 में कॉर्पोरेशन बैंक के कहने पर धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र समेत अनेक अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। उसने कहा कि लेकिन चारों में से किसी भी आरोपी को कभी सीबीआई की हिरासत में नहीं भेजा गया और ऐसा लगा कि उन्होंने जांच में सहयोग किया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई ने मामले में अंतिम रिपोर्ट दिसंबर 2021 में दायर की थी, जिसके बाद विशेष अदालत ने आरोपी को समन भेजकर पिछले साल सात मार्च को उसके समक्ष पेश होने को कहा था। गिरफ्तारी के डर से अपीलकर्ता ने पहले विशेष अदालत में और बाद में उच्च न्यायालय में जमानत अर्जी दाखिल की, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली।